डीसीपी मुख्यालय ने 11 महीने में 400 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तबादला सूचियां निकालीं। इन पर डीसीपी हेड क्वार्टर के साथ पुलिस कमिश्नर ने सहमति दी, लेकिन सवा सौ से ज्यादा पुलिसकर्मी ऐसे हैं जो आदेश के बाद भी स्थानांतरित नहीं हुए।
डीसीपी, एडिशनल डीसीपी, एसीपी और टीआई ने भी आदेश को दरकिनार कर अपने चहेते जवानों को रिलीव नहीं किया। कुछ अफसरों ने चहेते पुलिसकर्मियों को गंभीर प्रकरण की जांच देकर तो कुछ ने मौखिक आदेश पर उन्हें जाने नहीं दिया। सालों से एक ही थाने में डटे ये विभाग में भी चर्चित हैं। इनमें कुछ की आधी से ज्यादा नौकरी बिना ट्रांसफर के हो गई। कुछ नाम ऐसे हैं जो थोड़े समय स्थानांतरण के बाद जुगाड़ से फिर अपने थाने लौट आए। इनकी विभाग में अंगद जैसी पहचान हैं। चाहे कोई भी आदेश निकाल दे इनका स्थान नहीं छूटता।
स्थानांतरण पर अफसरों में भी तनातनी लोकसभा चुनाव के दौरान अपने 8 चहेते पुलिस अधिकारी-कर्मचारी को लेकर एडिशनल पुलिस कमिश्नर (सीपी) रैंक के अफसर ने डीसीपी मुख्यालय को तबादले के लिए कहा था, लेकिन डीसीपी ने स्थानांतरण नहीं किए। कई रिमांइडर बाद भी तबादले नहीं हुए तो एडि. सीपी गुस्सा हो गए। उन्होंने हेड क्वार्टर डीसीपी के बाबुओं को तलब कर क्लास ले ली। फिर तत्काल ऑर्डर जारी हुए और उनके चहेते 6 एसआई व 2 हेड कांस्टेबल के ट्रांसफर ऑर्डर निकले। दूसरा केस पूर्वी क्षेत्र के जोन की एक एसआई का है। डीसीपी ने एसआई का स्थानांतरण नहीं किया तो वह कमिश्नर के पास चली गईं। इससे गुस्साए डीसीपी ने अपने पॉवर का इस्तेमाल कर एसआई के एक केस में लापरवाही बताते हुए प्राथमिक जांच के आदेश दे दिए। ये कारण बताकर रोके जाते हैं ट्रांसफर {एसआई, एएसआई और हेड कांस्टेबल जिनकी क्षेत्र में तगड़ी लाइजनिंग है। जिनकी पहचान ‘कमाऊ पुत्र’ है, उन्हें मौखिक आदेश पर या शासकीय कार्य की आड़ लेकर रोका जाता है। कमिश्नर के आदेश भी इन्हें डिगा नहीं पाते। ऐसे 14 से ज्यादा पुलिस वाले हैं।
{अपने खास पुलिस वालों के स्थानांतरण होने से बचाने के लिए एसीपी व टीआई स्तर के अधिकारी उन्हें जांच के नाम पर शहर से बाहर भेज देते हैं तो कुछ मौखिक आदेश पर रोक लेते हैं। ऐसे 24 पुलिस वाले हैं। ऐसा ही हाल डीसीपी, एडिशनल डीसीपी और एसीपी कार्यालय के पुलिस वालों का है।
ये हैं क्राइम ब्रांच और अलग-अलग थानों के धरतीपकड़ पुलिसकर्मी {क्राइम ब्रांच- एसआई विकास शर्मा, एसआई जीतू मिश्रा, हेड कांस्टेबल सौरभ जादौन, कां.हृदेश शर्मा, कां.विनोद मनिया अरसे से जमे हैं।
{लसूड़िया थाना- एसआई अरुण जाट, हेड कांस्टेबल अभिषेक सेंगर।
{बाणगंगा थाना- हेड कांस्टेबल दीपचंद यादव (2015 से), हेड कांस्टेबल सुरेंद्र भास्कर (2014 से), हेड कांस्टेबल राहुल भदौरिया (चौथी बार थाने आ गए), हेड कांस्टेबल भूपेंद्र राजावत (दोबारा आए), हेड कांस्टेबल शेषपाल परिहार (दोबारा आए) हेड कांस्टेबल उदय प्रधान (2014), हेड कांस्टेबल चरण सिंह (दोबारा आए) हेड कांस्टेबल शैलेंद्र मीणा बाणगंगा (सेंट्रल कोतवाली हुआ, लेकिन गए नहीं)
{जूनी इंदौर एसीपी ऑफिस- मेहताब सिंह।
{अन्नपूर्णा हेड कांस्टेबल घनश्याम ठाकुर, मुन्नालाल (5 साल से ज्यादा समय)
{चंदन नगर- आरक्षक जोगेश लश्करी, हेड कांस्टेबल अभिषेक।
{एमआईजी थाने के भोला सिंह परिहार (4 बार ट्रांसफर हुआ हटे नहीं)।
{विजय नगर- कांस्टेबल कुलदीप (चार बार तबादला पर हटे नहीं)।
{भंवरकुआं- हेड कांस्टेबल सचिन सोनी।
{कनाड़िया- योगेश झोपे।
– एडिशनल ऑफिस जोन-2- रामजनम यादव, हेड कांस्टेबल गौतम पाल (8 माह पूर्व ट्रांसफर हुआ, नहीं हटे)।
एसीपी कार्यालय के हैं सबसे खास सबसे ज्यादा चर्चा में चारों जोन के वे जवान हैं जो 5 साल से एसीपी कार्यालयों में डटे हैं। एसीपी के खास हैं। एसीपी हों या न हों ये कोर्ट भी चला लेते हैं। इनमें तो कुछ ऐसे हैं जिन्हें कोई हटने नहीं देता। कुछ ऐसे हैं जो कमाऊ पुत्रों में गिने जाते हैं।
कमिश्नर ने कहा है, मानना पड़ेगा ^खुद पुलिस कमिश्नर के आदेश हैं। किसी ने आदेश के बाद भी रिलीव नहीं किया तो गलत है। सभी डीसीपी को पत्र भी लिखे हैं। मैं खुद रिव्यू करवाऊंगा। – जगदीश डाबर, डीसीपी मुख्यालय