खरगोन में सिद्धिविनायक श्रीगणेशजी को इस बार मोर पंख, अमेरिकन डायमंड, माणिक व मोती का मुकुट सजेगा। लगभग ढाई फीट के इस आर्टिफिशियल मुकुट तैयार किया गया है। गणेश चतुर्थी पर 7 सितंबर को विशेष मुहूर्त में इसे श्रीगणेशजी के मस्तिष्क पर सजाया जाएगा। मुकुट को टैगोर पार्क कॉलोनी स्थित एक निजी स्कूल टीचर वीणा चंद्रकांत सोनी ने तैयार किया है। वह पिछले 25 सालों से प्रगति आर्ट्स के नाम से ड्राइंग व क्राफ्ट की क्लास चला रही है। वे पिछले 5 सालों से गणेशजी के लिए इसी तरह मुकुट तैयार कर रही है। 15 दिन में तैयार किया ढाई फीट का मुकुट ड्राइंग व क्राफ्ट कलाकार वीणा सोनी बताती है गणेशजी के मोर पंख मुकुट को 15 दिन में तैयार किया है। सामग्री जुटा लेने के बाद रोज 2 घंटे इसी पर वर्क किया। अपने उद्देश्य को लेकर उन्होंने कहा कि यह आंतरिक विषय है इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता काफी पहले परिवार से सिद्धिविनायक को मुकुट तैयारकर भेजते थे। इसके निर्माण पर 5 हजार से कम खर्च आया। विश्राम बाद प्रतिमा नहीं ले जा पाए नागा साधू खरगोन के सिद्धिविनायक मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। प्रतिमा एक पाषाण पर बनी है। हाथ में शिवलिंग की अंगूठी है। तीसरा नेत्र और सुंड पर नाग बना है। 108 दाने की रुद्राक्ष माला गले में है। साहित्यकार राकेश राणा बताते है नवलपुरा में नागा साधुओं ने बड़ा यज्ञ किया था। पूर्णाहुति बाद साधु मंडली भगवान की प्रतिमा लेकर लौट रहे थे। वे कुंदा तट पर रात्रि विश्राम के लिए रुके। इस दौरान उन्होंने भगवान सिद्धि विनायक की प्रतिमा को रख दिया। विश्राम के बाद सुबह जब साधुओं ने प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वह अपने स्थान से नहीं हिली। आखिरकार वे प्रतिमा छोड़कर चले गए। इस तरह यहां भगवान की स्थापना हुई। नवलपुरा में यज्ञ व प्रतिमा से जुड़े अवशेष हैं।