श्वेतांबर जैन समाज में पर्यूषण पर्व का शनिवार से शुभारंभ हो गया। जैन समाज में पर्यूषण का विशेष महत्व है, क्योंकि यह आत्मशुद्धि, तप और धार्मिक गतिविधियों का सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है। भेल श्वेतांबर जैन मंदिर में प्रातः 8:00 बजे स्नात्र पूजा की गई और उसके बाद अष्टाहिन्का शास्त्र पर विनोद जैन द्वारा प्रवचन दिए गए। साथ ही पर्यूषण पर्व क्यों मनाए जाते हैं इस पर धर्म चर्चा की गई। वहीं जिंदाणी परिवार की ओर से पंचकल्याणक पूजन रखा गया। शाम को जैन समाज के परिवारों द्वारा प्रतिक्रमण किया गया और रात को भगवान की भक्ति की गई। इन दिनों में धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और धर्म के मर्म को समझने के लिए प्रवचनों का आयोजन किया जाता है। जैन साधु, साध्वी और श्रावक-श्राविका इस समय में विशेष रूप से प्रवचन देते हैं। श्वेतांबर जैन समाज के लोग इन दिनों पंच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) का पालन और ध्यान एवं प्रार्थना में अधिक समय बिताते हैं। आत्मा की शुद्धि और कर्मों के नाश के लिए पर्व का आयोजन पर्यूषण का समापन क्षमावाणी के दिन होता है, जब सभी एक-दूसरे से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं। इस पर्व के दौरान अनुयायी सादगी, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों का पालन करते हैं और आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। पर्यूषण पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की दोषों और अवगुणों से मुक्ति पा सकता है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है “आत्मा के पास रहना” और यह पर्व आत्म-अनुशासन और संयम के माध्यम से आत्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है। जैन अनुयायी इस दौरान अपनी क्षमता अनुसार विभिन्न प्रकार के तप करते हैं, जिसमें अन्न और जल का त्याग प्रमुख है। यह उपवास आत्मा की शुद्धि और कर्मों के नाश के लिए किया जाता है।