नीमच जिले में एक सर्वे के बाद 200 लोगों की निजी संपत्ति सरकारी हो गई। मालिकों को पता चला तो अपनी संपत्ति वापस पाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक पहुंचे। कहीं सुनवाई नहीं हुई तो भूख हड़ताल करने को मजबूर हो गए। 6 दिन भूखे बैठे रहने के बाद आखिरकार एक टीम बनाकर मामले की जांच का आश्वासन मिला। जांच के बाद गड़बड़ी मिलने पर सख्त कार्रवाई की बात भी कही गई है। मामला नीमच जिले के मनासा ब्लॉक के आंतरी बुजुर्ग गांव का है। केंद्र सरकार ने ग्रामीणों को आर्थिक रूप से मजबूत करने और उनकी भूमि का मालिकाना हक दिलवाने के लिए स्वामित्व योजना के तहत ड्रोन सर्वे करवाया है। सर्वे के बाद जो स्वामित्व पत्र गांव वालों तक पहुंचा तो उनकी नींद उड़ गई। उनके घर व जमीन को रिकॉर्ड में सरकारी बता दिया गया। योजना में अनियमितता और गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए 22 अगस्त को 8 लोग ग्राम पंचायत भवन के बाहर बैनर लगाकर भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनका कहना था कि स्वामित्व योजना के तहत आबादी क्षेत्र में ड्रोन सर्वे किया गया था। पटवारी ने लापरवाही और भ्रष्टाचार करते हुए बने बनाए मकान और भूखंडों को शासकीय भूमि में दर्शा दिया, जबकि इस जमीन पर कई सालों से हम रह रहे हैं। पटवारी द्वारा पात्र व्यक्तियों के मकान और बाड़े की भूमि को स्वामित्व योजना में नहीं जोड़ा गया। दैनिक भास्कर की टीम ने ग्रामीणों से बात कर उनकी परेशानी को जाना…पढ़िए यह रिपोर्ट… सबसे पहले मामले को इन 4 केस से समझिए केस -1 : 70 साल के बगदीराम धनगर सालों से आंतरी बुजुर्ग गांव में निवास कर रहे हैं। साल 2008 में ग्राम पंचायत द्वारा इंद्रा आवास योजना के तहत उन्हें 1500 स्क्वायर फीट (30X50) भूखंड दिया गया। प्लाट पर मकान निर्माण के लिए 25 हजार रुपए का अनुदान भी दिया गया। बगदीराम कहते हैं- कुछ समय पहले उनका भू-अधिकार पत्र बनकर आया है। पत्र पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए। मेरे प्लाट पर 3 पड़ोसियों का नाम भी चढ़ा दिया गया। मेरे प्लाट नंबर पर दूसरों के नाम क्यों चढ़ा दिए गए, यह समझ नहीं आ रहा है। मुझे मिली जमीन का टुकड़ा कहां गया, कोई बताने वाला नहीं हैं। केस – 2 : कैलाश गहलोत का जन्म गांव में ही हुआ। उनकी पुश्तैनी जमीन का दो भाइयों में बंटवारा हुआ। 63 साल पुराने भूखंड का बंटवारा हुआ तो उनके हिस्से में 30X60 स्क्वेयर फीट जमीन उनके हिस्से में आई। ड्रोन सर्वे के बाद जो कागज मिले, उसमें प्लाट साइड 500 स्क्वेयर फीट कम बता दिया गया। मेरी इतनी जमीन को सरकारी रिकॉर्ड में दर्शा दिया गया। केस – 3 : गांव के सरपंच नंदकिशोर की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उनका 20X60 का प्लाट है, जो सर्वे में 20X40 का बता दिया गया। 20 स्क्वेयर फीट जमीन कहां गई, नहीं पता, जबकि इस प्लाट पर हमारा मकान बनकर खड़ा है। वहा भी दो मंजिला। ऐसा मेरे साथ ही नहीं मोहल्ले के करीब-करीब सभी मकानों के प्लाट की साइज कम दर्शाई गई है। इस सर्वे के हिसाब से तो सभी के आधे-आधे मकान सरकारी जमीन में जा रहे हैं। केस -4 : गांव में मेरा 40 बाय 60 का प्लाट है। बाउंड्रीवॉल तो पूरे में बनवा ली, लेकिन आर्थिक परेशानियों के चलते 20X30 साइज के प्लाट पर ही निर्माण करवाया। बाकी जगह खाली छोड़ दी। कुछ समय पहले ड्रोन सर्वे हुआ, अभी जब मालिकाना हक के कागज देखे तो पता चला खाली छोड़ी जगह सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। सुनील राठौर किसान हैं। वे कहते हैं यह परेशानी मेरी अकेले की नहीं गांव के 200 से ज्यादा लोगों के साथ ऐसा हुआ है। बिना सर्वे भी कई लोगों की जमीन को जोड़ा ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि उन व्यक्तियों की संपत्तियों को योजना में शामिल कर लिया गया, जिनके सर्वे नहीं हुए हैं। ऐसे लोगों से रिश्वत लेकर नाम जोड़ दिए गए। हमसे भी रिश्वत की मांग की गई, लेकिन हमने रुपए नहीं दिए, इस पर हमारे नाम हमारी ही जमीन से उड़ा दिए गए। हमने सर्वे दोबारा कराने और धांधली करवाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। ग्रामीणों को कहना है कि गांव के 200 से अधिक ऐसे लोग हैं, जिनके मकान और भूखंडों में इस तरह की तकनीकी खामियां हैं। उन्होंने कलेक्टर, विधायक, एसडीम, तहसीलदार को आवेदन के माध्यम से अवगत करवाया था, लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई। इसके चलते हुए मजबूरन भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा। परेशान होकर 22 अगस्त को गांव के 8 लोग 6 दिनों तक हड़ताल पर बैठे रहे। हड़ताल पर बैठे एक व्यक्ति की तबीयत बिगड़ी, उसे ड्रिप चढ़ाकर अस्पताल ले जाने की सलाह भी दी, लेकिन उसने यह कहते हुए कि अस्पताल जाने से मना कर दिया कि जब तक समाधान नहीं होता, तब तक अनशन जारी रहेगा। ग्रामीणों के भूख हड़ताल पर बैठने की जानकारी लगते ही एसडीएम, तहसीलदार अनशन खत्म कराने पहुंचे। काफी कोशिशों के बाद भी ग्रामीण नहीं माने। हड़ताल के दौरान एक ग्रामीण की तबीयत बिगड़ गई, लेकिन वह अस्पताल जाने को तैयार नहीं हुआ। हड़ताल खत्म करवाने के लिए प्रशासन ने ग्रामीणों के साथ तीन बैठकें की। 27 अगस्त को शाम में हुई बैठक में प्रशासन द्वारा किए गए वादों पर भरोसा करके ग्रामीण अनशन से उठ गए। बैठक में बताया गया कि एक टीम का गठन होगा। टीम में तीन पटवारी रहेंगे। वर्तमान में गांव वाले पटवारी को शामिल नहीं किया जाएगा। राजस्व निरीक्षक भी टीम में शामिल रहेंगे। गांव में जाकर रिपोर्ट तैयार कर टीम एसडीएम को रिपोर्ट सौंपेंगी। टीम का गठन कर जांच करवा रहे एसडीएम पवन बारिया का कहना है कि पुरानी आबादी में जो मकान हैं। वहां पर ड्रोन से सर्वे के बाद स्वामित्व रिकॉर्ड तैयार हुए हैं। प्रथम प्रकाशन के 15 दिन की अवधित दावे आपत्ति लिए जाते हैं। किसी को कहीं कुछ गड़बड़ लगता है तो वह सुधार संबंधी आवदेन नायब तहसीलदार को देता है। 15 दिन बाद उसमें अंतिम आदेश जारी हो जाते हैं। आंतरी बुजुर्ग गांव में ग्रामीणों ने अवगत करवाया है कि पटवारी द्वारा निष्पक्ष सर्वे नहीं किया गया है। सर्वे का पुन: परीक्षण करवाया जाए। ग्रामीणों से दो बार बात हुई। नायब तहसीलदार भी ग्रामीणों से मिले। उन्होंने बताया कि देशभर में आबादी के रिकॉर्ड बन रहे हैं। 2018 में यदि संबंधित व्यक्ति का वहां घर रहा होगा। सवाल उठ रहा है कि रिकॉर्ड में आधा घर आधा मकान आ रहा है, बाकी नहीं तो इसमें ऐसा हो सकता है, क्योंकि ड्रोन प्लाई पुरानी आबादी के मैपिंग रिकॉर्ड से हुआ है, ऐसे में हो सकता है कि बाद में उन लोगों ने अतिक्रमण करके आगे और घर बना लिया है। गाइडलाइन के अनुसार कार्रवाई हो रही है, जांच के बाद पता चला पाएगा कि गड़बड़ी हुई है तो कहां पर। कब शुरू हुई स्वामित्व योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2020 को राष्ट्रीय पंचायत दिवस के अवसर पर केंद्र शासन की ओर से स्वामित्व योजना की शुरुआत की थी। पंचायती राज मंत्रालय को योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी गई। भारतीय सर्वेक्षण विभाग योजना के क्रियान्वयन में तकनीकी सहयोग दे रहा है। इस योजना के तहत ड्रोन सर्वे के आधार पर ग्रामीणों को उनकी भूमि का मालिकाना हक दिया जा रहा है। योजना को शुरू करने का उद्देश्य स्वामित्व योजना में ऐसे लोग जो वर्षों से गांव के आबादी क्षेत्र में, जिस भूमि पर रह रहे हैं। उन लोगों को उस भूमि का मालिकाना हक देना है। योजना का उद्देश्य सटीक भूमि रिकॉर्ड उपलब्ध कराकर संपत्ति विवादों को कम करना भी है। साथ ही वित्तीय तरलता को बढ़ावा देना है। नियोजन और राजस्व संग्रह को सुव्यवस्थित करना भी है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को संपत्ति के अधिकारों के बारे में सही जानकारी मिल सके। योजना के अंतर्गत जिन नागरिकों को स्वामित्व पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। कैसे होता है काम योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन फॉर्म जमा करना होता है। सरकार द्वारा राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा ड्रोन की सहायता से ग्रामीण क्षेत्र का सीमांकन एवं मैपिंग करवाई जाती है। जिस व्यक्ति के नाम पर जमीन है, उसे स्वामित्व पत्र दिया जाता है। ग्रामीणों को आवेदन की जरूरत नहीं योजना की सबसे खास बात यह है कि गांव में रहने वालों को किसी तरह के आवेदन की जरूरत नहीं है। सरकार द्वारा जैसे-जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे और मैपिंग का काम आगे बढ़ेगा, ग्रामीणों को उनकी जमीन का ‘प्रॉपर्टी कार्ड’ मिलता जाएगा। 2021 से 2025 तक इस योजना के तहत 6.62 लाख गांवों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है।