कभी-कभी व्यक्ति का अपना स्वभाव ही उसके लिए जानलेवा बन जाता है। इसलिए अपने स्वभाव को समय देखकर स्थिति-परिस्थिति के अनुसार बदल लेना चाहिए। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शनिवार को यह बात कही। स्वभाव नहीं बदलने से चली गई जान महाराजश्री ने एक कहानी सुनाई- एक व्यक्ति की सुंदर, सुशील, गृहकार्य में दक्ष धार्मिक पत्नी थी पर उसमें कमी यह थी कि वह अपने स्वभाव से परेशान थी। यदि उसे कोई व्यक्ति कोई काम बताता तो वह उलटा करती। पति ने उसका स्वभाव जान लिया। उसे पत्नी से जो काम करवाना रहता, वह उसका उलटा बोलता। उसे अपने पिता का श्राद्ध करना था। उसने पत्नी से कहा कि इस वर्ष मैं अपने पिता का श्राद्ध नहीं करूंगा, तो वह अपने स्वभाव अनुसार बोली- क्यों नहीं करोगे? पिता का श्राद्ध नहीं करोगे तो उन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी? उसने कहा ठीक है- तू कहती है तो मैं कर देता हूं। पर उसने कहा कि मैं एक ब्राह्मण बुलाउंगा। वह बोली भगवान ने इतना धन दिया है, एक ब्राह्मण को जिमाओगे शर्म नहीं आती, 11 बुलाएंगे। आखिरी में वह भूल गया और उसने सीधी बात कर दी कि ये पिंड गंगाजी में विसर्जित करना है, पत्नी बोली कोई गंगाजी में विसर्जित नहीं होंगे, यहीं नाले में डालो। कुछ दिन बाद माघ मास आया। लोग प्रयाग स्नान के लिए जा रहे थे। पति ने पत्नी से कहा- मैं प्रयाग स्नान करने नहीं जाऊंगा। बोली- कैसे नहीं जाओगे, जमाने के लोग जा रहे हैं, तुमको भी जाना पड़ेगा। पति बोला- ठीक है, मैं अकेले ही जाऊंगा, तुम्हें नहीं ले जाऊंगा। वह बोली नहीं, मैं भी चलूंगी। दोनों प्रयाग पहुंच गए। पति ने स्नान किया। पत्नी से बोला- कूदना मत, यहीं किनारे घाट पर स्नान कर लो मेरी तरह। वह बोली घाट पर भी कोई स्नान होता है और गंगा में कूद गई। वह गंगा में बहने लगी, किस्मत से उसे गाय मिल गई। उसने गाय की पूंछ पकड़ ली, पति ने कहा जोर से पकड़, तो उसने स्वभाववश गाय की पूंछ ही छोड़ दी। परिणाम यह हुआ कि उसे जान से हाथ धोना पड़ा। इसीलिए अपने स्वभाव को समय अनुसार बदल लेना चाहिए। यह देखना चाहिए कि मुझे इसमें लाभ है या नहीं।