शहर के मध्य में स्थित सिंधिया ट्रस्ट के द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी के बाद शुक्रवार को कृष्ण बने छोटे से बालक ने दोपहर 12 बजे माखन की मटकी फोड़ी। भक्त और बाल गोपाल ने माखन व मिश्री व धानी का प्रसाद प्राप्त किया। इसके बाद मंदिर में भगवान की चांदी की पादुका का पूजन किया गया। वहीं वर्ष में एक बार दिन में दोपहर करीब एक बजेे से शयन आरती हुई। गोपाल मंदिर पर परंपरा अनुसार बछ बारस पर 30 अगस्त को मंदिर के मुख्य द्वार पर करीब 10 फीट ऊंची माखन मटकी बांधी गई। पुजारी मधुर शर्मा, मंदिर ट्रस्ट के अकाउंटटेंट अक्षय ढांकने सहित भक्तों ने कृष्ण बने छोटे बालक को लेकर द्वार पर पहुंचे और बंशी से मटकी फोड़ कर उत्सव मनाया तो मंदिर नंद के आंनद भयो जय कन्हैयालाल की जयकारों से गूंज उठा। मटकी में रखे माखन, मिश्री व धानी प्रसाद वितरण के पश्चात दिन में भगवान द्वारकाधीश की शयन आरती की गई। पुजारी मधुर शर्मा ने बताया कि मंदिर की परंपरा है कि जन्माष्टमी बाद चार दिन रात में शयन आरती नही की जाती। मान्यता है इस समय भगवान के सोने और उठने का समय निर्धारित नही होता है। पांचवें दिन बछ बारस के दिन भगवान मटकी फोडऩे के बाद शयन करते है। इसलिए साल में एक दिन बछ बारस पर दिन में शयन आरती होती है। इसके पहले भगवान का पूजन होता है। भगवान की चांदी की पादुका रखी जाती है। महिलाओं ने किया गाय व बछड़ों का पूजन बछ बारस पर शहर में कई स्थानों पर महिलाओं ने मंदिरों, आश्रमों व गोशालाओं में जाकर गाय व बछड़ों का पूजन कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। महिलाएं इस दिन मक्का व ज्वार से बने आटे की रोटी का सेवन करते हैं। भोजन में गेहूं व अन्य चीजों का उपयोग नही किया जाता है। इस महिलाएं व्रत रखती है पूजन करने के बाद कहानी सुनकर व्रत खोलती है।