श्री जुगलकिशोर मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। रात्रि ठीक 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और फिर भक्तों को श्री कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन मिले। जिसे पाने के लिए भक्त घंटों से आतुर थे। पन्ना के जुगलकिशोर जी के मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व वृंदावन के तर्ज पर मनाने की परंपरा करीब 300 वर्ष पुरानी है। यहां देश के कोने कोने से लाखों की संख्या में भक्त जन्माष्टमी मनाने पहुंचते है। वहीं परंपरा अनुसार भगवान के जन्म के बाद महा आरती होती है। जिसमे पन्ना राजघराने के महाराज छत्रसाल द्वितीय ने चंवर डुलाकर परंपरा का निर्वाहन किया। आज होगी बधइयां और विशाल भंडारे का आयोजन जन्माष्टमी के दूसरे दिन भगवान श्री जुगलकिशोर मंदिर प्रांगण में दिन भर कार्यक्रम होंगे। जिसमें बधाईयां होगी। भक्त भगवान के जन्मोत्सव की खुशियां मनाएंगे। साथ ही लड्डू, टॉफी बिस्कुट का वितरण होगा। वहीं रात्रि ठीक 10 बजे मंदिर प्रांगण में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। जिसमें शामिल होने और भगवान का प्रसाद ग्रहण करने श्रद्धालु पन्ना पहुंचेगे। दरअसल पन्ना के श्री जुगलकिशोर मंदिर में जन्माष्टमी के पर्व पर प्रशासन व मंदिर समिति की ओर से विशेष तैयारियां सात दिवस पहले से की जाती है। मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। श्री जुगलकिशोर जी के मंदिर में जन्माष्टमी मनाने के लिए हजारों की संख्या में भक्त पन्ना आते है। दरअसल पन्ना के श्री जुगलकिशोर जी मंदिर का निर्माण पन्ना के चौथे बुंदेला राजा राजा हिंदूपत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान 1756 से 1778 तक किया था। किंवदंतियों के अनुसार,इस मंदिर के गर्भगृह में रखी गई मूर्ति को वृंदावन से ओरछा और फिर पन्ना लाया गया था। यहां विराजित भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी जुगलकिशोर के रूप में भक्तों को दर्शन देते है। इनके आभूषण और पोशाक बुंदेलखंडी शैली को दर्शाते हैं। आभूषणों की बात करें तो भगवान को जनमाष्टमी के दिन बेशकीमती करोड़ों के हीरा जड़ित सोने के जेवरात पहनाए जाते है। मंदिर में बुंदेला मंदिरों की सभी स्थापत्य विशेषताएं हैं। जिसमें एक नट मंडप, भोग मंडप और प्रदक्षिणा मार्ग शामिल हैं।