रामनरेश सिंह कुशवाह VS मध्य प्रदेश सरकार सरकारी स्कूल के छात्रों ने सरकार से लड़कर हासिल की MBBS सीट, ये केस कानूनी किताबों में होगा शामिल हाल में एमपी के 7 छात्रों के सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया है। सरकारी कोटे के तहत सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश की पात्रता के बावजूद इन्हें सीट से वंचित किया गया था। इन छात्रों ने सरकार से एक साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर इन छात्रों के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सीट रिजर्व कर इस साल एडमिशन देने के आदेश दिए। रामनरेश कुशवाह, सचिन बघेल, दीपक जाटव, विकास सिंह, तपस्या कुटवारिया, मुस्कान हिड़ाऊ, तसमियां खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। खास बात यह है कि इस फैसले को कानून की किताबों रेफरेंस के तौर पर शामिल किया जाएगा। आपकी काउंसलिंग प्रक्रिया ही गलत थी। यदि राज्य सरकार ने सही से आरक्षण लागू किया होता तो स्टूडेंट्स को पिछले साल ही MBBS में प्रवेश मिल जाता। यह पूरी तरह गलत है। आप इन्हें नीट 2023 के स्कोर के आधार पर इस साल प्रवेश दें।”- सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला मप्र कंबाइंड नीट यूजी काउंसलिंग-2023 में राज्य सरकार द्वारा दिए गए गलत आरक्षण से प्रभावित 7 छात्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। छात्र बताते हैं- नीट यूजी-2023 में हमारी रैंक अच्छी थी। मप्र सरकार ने सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए 5% कोटा आरक्षित किया था हमें एमबीबीएस में प्रवेश मिलना तय था। लेकिन जिस तरह आरक्षण लागू किया गया उससे एडमिशन नहीं मिल सका। हमने डीएमई में शिकायत की। अधिकारी कहते थे कि ‘यहां कुछ नहीं होगा। तुम नेतागिरी कर रहे हो। तुम्हें यहां के बजाय चुनाव लड़ना चाहिए। तब भी हम शांत रहे। हमारे पास दो विकल्प थे। सिस्टम से लड़ें या हथियार डालकर नीट की तैयारी करेंं। हमने लड़ने का निर्णय लिया।
सोशल मीडिया पर हम सभी मिले थे। रामनरेश (रिंकु) कुशवाह ने इस केस को लीड किया। हमने आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के जजमेंट सर्च किए। हमें 3 बड़े फैसले मिले। इनमें सौरभ यादव Vs स्टेट ऑफ यूपी, साधना सिंह दांगी Vs पिंकी असाटी और कृष्णा श्रृद्धा Vs स्टेट ऑफ आंध्रप्रदेश शामिल हैं। कृष्णा श्रृद्धा केस ने हमें मजबूती दी। ये पूरा समय डिप्रेशन में बीता। हम ज्यादा संपन्न परिवारों से नहीं थे। अच्छे वकील एक ही सुनवाई के लाखों रुपए लेते हैं। हमारी मुलाकात जबलपुर में एडवोकेट नमन नागरथ से हुई। यही हमारे केस का टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने फीस चार्ज नहीं की। जब हमें हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली तो उनके कहने पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। कोर्ट में गौरव अग्रवाल, अमित कुमार, के परमेश्वर, सिद्धार्थ अय्यर और उत्कर्ष सोनकर, आदित्य शंकर पाण्डेय ने पैरवी की। हर सुनवाई से पहले लगता था कि हमारे पक्ष में फैसला आएगा। लेकिन सुनवाई के लिए अगली तारीख मिल जाती। राज्य सरकार समय पर जवाब दाखिल नहीं करती थी और समय मांग लिया जाता था। फिर भी हम रुके नहीं। आखिरकार सरकारी सिस्टम हारा। हमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देने का फैसला आ गया। अब जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश लेकर डीएमई पहुंचे तो उन्हीं अधिकारियों को कहना पड़ा- आप जीत गए। खूब लड़े। अब रामनरेश सिंह कुशवाह VS मप्र सरकार केस भी एक उदाहरण बन गया है। जो कानूनी किताबों में रेफरेंस के तौर पर प्रकाशित होगा। ये था मामला… मप्र सरकार ने 2023 में मेडिकल कॉलेजों में 5% सीट सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए रिजर्व की। लेकिन डीएमई ने इस कोटे के तहत अनारक्षित वर्ग की सीट पर आवेदक छात्रों की मेरिट में तैयार करने में गड़बड़ी की। अनारक्षित वर्ग से ज्यादा अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के छात्रों को सीट नहीं मिली। अनारक्षित वर्ग की 77 खाली सीट को सामान्य पूल में डाल दिया।
ये खबर इसलिए जरूरी क्योंकि सरकारी सिस्टम की अव्यवस्थाओं से जूझ रहे देश के हजारों छात्र इस लड़ाई में अपने हक से वंचित रह जाते हैं। टाइम लाइन से समझिए पूरी लड़ाई