साधन भक्ति से मनुष्य का परमात्मा से प्रेम और सभी में परमात्मा का दर्शन कर भक्ति से ब्रह्म ज्ञान की अनुभूति कैसे होती है, इसे श्रीमद् भागवत में बताया गया है। इसमें कुछ इस तरह बताया गया है, कि जब मनुष्य भगवान के लीला अवतार में उनके द्वारा किए गए पराक्रम, उनके गुण और चरित्रों को श्रवण करता है, तो उसका अंत:करण परमानंद में भावविभोर हो जाता है। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार शाम यह बात कही। सच्चा भक्त सबकुछ भूलकर परमात्मा को पुकारता है महाराजश्री ने कहा कि भगवान का भक्त संसार को भूलकर बगैर कोई संकोच किए नाचने-गाने लगता है। जोर-जोर से कीर्तन करता है। कभी रोने लगता है, कभी हंसने लगता है, कभी ध्यान करता है, वंदना करता है तो कभी भगवान में तन्मय हो जाता है। झूमझूमकर हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे… हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे… श्रीमन्नारायण श्रीमन्नारायण… करके परमात्मा को पुकारने लगता है। तब भक्ति योग के प्रभाव से वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और धीरे-धीरे उसे अपने अंत:करण में भगवतता प्राप्त हो जाती है और वह बाहर भी भगवान का दर्शन करने लगता है। तुलसीदासजी कहते हैं सियाराममय सब जग जानी करऊं प्रणाम जोरि जुग पानी… तब वह सांसारिक दलदल के संसार चक्र से छुटकारा प्राप्त कर लेता है, सभी जगह उसे ईश्वर ही दिखता है। फिर उसे कोई ज्ञानी, तो कोई विरक्त संन्यासी के रूप में जानने मानने लगते हैं। श्रीमद् भागवत की विशेषता यह है कि उसमें ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, निष्काम कर्म का निरूपण किया गया है, जो परमात्मा के भक्तों का धन है, जो परमहंसों का ज्ञान निधान है। राम राम भजते रहो, सदा धरो मन ध्यान… डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि भागवत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो परमात्मा की भक्ति में रम जाता है, उसे स्वत: ही ईश्वर तत्व की अनुभूति होने लगती है। और जो जीव पहले अपने से परमात्मा से भिन्न मानता था, अब अभिन्न मानने लगा है कि परमात्मा मुझसे अलग नहीं हैं। फलस्वरूप उसे परमात्मा के प्रति अनुरक्ति और संसार से विरक्ति जो कि ब्रह्म ज्ञान की कारण बन जाती है। और यह सब क्रिया तब होती है जब व्यक्ति ब्रह्मनिष्ठ गुरु और परमात्मा के प्रति परम श्रद्धा और विश्वास के साथ समर्पित हो और उनका भक्त हो। इसीलिए जो बुद्धिमान मनुष्य हैं, चाहे वे निष्काम हों या कामनाओं से युक्त हों या मोक्ष चाहते हैं। उन्हें तीव्र भक्ति योग के द्वारा परमात्मा की आराधना करना चाहिए। राम राम भजते रहो, सदा धरो मन ध्यान, कभी तो दीनदयाल की झनक पड़ेगी कान…।