इंदौर के शंकराचार्य मठ में डॉ. गिरीशानंदजी महाराज के प्रवचन:श्रीमद् भागवत महापुराण के दो अध्यायों में श्रीकृष्ण को कहा गया है ‘अध्यात्म दीप’

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भगवान श्रीकृष्ण को श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध के द्वितीय अध्याय के तीसरे श्लोक में और 10वें स्कंध के तीसरे अध्याय के 24वें श्लोक में ‘अध्यात्म दीप’ कहा गया है। कारण यह है कि श्रीमद् भागवत भगवान श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं है। भगवान ही उसके प्रकाशक हैं, क्योंकि वे स्वयं प्रकाशित हैं। जिसने भी भागवत पुराण का श्रवण किया, वह भगवत स्वरूप हो गया। इसीलिए प्रत्येक वक्ता, भगवत स्वरूप है। वक्ता के रूप में आविर्भाव भगवान की करुणा है। करुणा के वशीभूत होकर ही परमात्मा ने इसे प्रकाशित किया है। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में बुधवार शाम यह बात कही। परीक्षित ही हैं भागवत के मुख्य श्रोता महाराजश्री ने बताया श्रीमद् भागवत में नारायण, ब्रह्मा, नारद, व्यास और शुकदेवजी की प्रवचन प्रवृत्ति केवल करुणा ही है। चित्त में स्नेह या करुणा का उदय हुए बिना भागवत के रहस्यों को प्रकट नहीं किया जा सकता। श्रीमद् भागवत श्रवण से ब्रह्मा सृष्टि कर्म में लग गए, नारद भक्तिभाव के प्रचार-प्रसार में लग गए, व्यासजी समाधि में जाकर कृष्ण लीलाओं का स्मरण करने लगे और उन्होंने लोक कल्याण के लिए भागवत का निर्माण किया। शौनक आदि ऋषियों ने भागवत श्रवण कर आनंद तो लिया, लेकिन श्रवण गौण होने के कारण केवल यज्ञ फल की समग्रता ही प्राप्त कर सके। मोक्ष एवं भगवान लीला में वे प्रवेश नहीं कर सके। यह सौभाग्य तो केवल राजर्षि परीक्षित को ही प्राप्त हुआ। वे बगैर किसी व्यवधान के तत्काल श्रवण मात्र से ही मुक्त हो गए। इसीलिए भागवत के मुख्य श्रोता परीक्षित ही हैं। भागवत महात्म्य में उन्हें ही श्रवण से मुक्ति का साक्षी कहा गया है। अवधूत शिरोमणि हैं शुकदेवजी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि 12वें स्कंद के अंत में सांसारिक सर्पदंश से केवल परीक्षित की मुक्ति का ही अनुस्मरण है, क्योंकि उन्हीं की श्रवण निष्ठा प्रसिद्ध है। शुकदेवजी अवधूत शिरोमणि हैं। इतने गूढ़ भाव से रहते हैं, कि देखने में मूढ़ लगते हैं। इनके वर्णन में कहा गया है कि शुकदेवजी महायोगी समदर्शी निर्विकल्प एवं ब्रह्मनिष्ठ थे। उन्हें स्त्री-पुरुष के भी भेद का ज्ञान नहीं था। जब राजा परीक्षित को कोई सर्पदंश से मुक्ति दिलाने के लिए तैयार नहीं हुआ, उस समय शुकदेवजी ऋषियों की भीड़ में से भगवान की तरह प्रकट हो गए। उस समय के उनके सौंदर्य का वर्णन उसी तरह किया जाता है, जैसे किसी भक्त के सामने भगवान प्रकट हो गए हों। जिस तरह भगवान के सौंदर्य का निरूपण किया जाता है ठीक उसी तरह शुकदेवजी की भी 38 विशेषताओं का वर्णन मिलता है। ऐसा महान वक्ता होना और भगवान के कृपा पात्र परीक्षित का श्रोता होना श्रीमद् भागवत की ऐसी विशेषता है, जो कि अन्य दुर्लभ है।