हिंदी साहित्य समिति इंदौर में कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला:वक्ताओं ने पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी को बताया ‘हिंदी का अपराजेय योद्धा’, दी आदरांजलि

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हिन्दी के अपराजेय योद्धा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन एवं मदनमोहन मालवीय द्वारा प्रारंभ किए गए हिन्दी आन्दोलन को मूर्त रूप देने में पद्मभूषण पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी ने अहम भूमिका निभाई। हिन्दी के प्रति समर्पण के कारण ’भैयाजी’ के नाम से साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाई। ऐसे हिंदी भक्त की जीवनी हिंदी के विद्वान पं. विद्यानिवास मिश्र ने लिखी। श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति ने अपने कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला के 74वें क्रम में पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी को आदरांजलि देते हुए स्मरण किया। उनके साहित्यिक कृतित्व-व्यक्तित्व पर साहित्य मंत्री डाॅ. पद्मा सिंह ने बताया कि वे आकाशवाणी में उपनिदेशक रहे। इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी भारत में हिंदी भाषा में सेवा प्रदान की। उनकी लिखी पुस्तक ’आधुनिक हिन्दी का आदिकाल’ हिन्दी इतिहास की धरोहर है। वो हिन्दी विरोधियों पर कठोर प्रहार करते थे। रामलीला में परशुराम बनते थे चतुर्वेदी डाॅ. आरती दुबे ने उनके संदर्भ में बताया कि वे रामलीला में परशुराम के पात्र का मंचन हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए किया करते थे। उनका कहना था कि भावना ही चरित्र का निर्माण करती है। डाॅ. अखिलेश राव ने उनके उस संस्मरण को याद दिलाया, जिसमें वह हिन्दी में वे थोड़ी सी गलतियों को भी सहन नहीं कर पाने पर दु:खी हो जाते थे। वरिष्ठ साहित्यकार राधिका इंगले ने कहा कि भैयाजी ने अपने सम्पादकीय में लिखा था कि मेरे सम्पत्ति के उत्तराधिकारी मेरे परिवार वाले हो सकते हैं, पर वास्तविक उत्तराधिकारी वे भावी युवक होंगे जिन्हें हिन्दी से प्रेम होगा और हिन्दी को आगे ले जाएंगे। दिनेश तिवारी उपवन ने चतुर्वेदी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के बारे में जानकारी दी। उर्दू को उत्तरप्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने का किया था विरोध डाॅ. शीला चंदन ने उनके द्वारा उर्दू को उत्तरप्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाए जाने के विरोध में उनके कठोर प्रसंग का विवरण प्रस्तुत किया। प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने कहा कि चतुर्वेदी जी को वास्तविक रूप से सम्मान देने का मतलब है जब हम सब हिंदी भाषा अपनाएं, देवनागरी में लिखें और रोम से दूरी बनाएं। अंत में प्रधानमंत्री अरविन्द जवलेकर ने आभार माना। इस अवसर पर मणिमाला शर्मा, नितिन उपाध्येय,, दिलीप नीमा, नरेश जोशी, विजय खंडेलवाल, उमेश पारिख, अनिल भोजे, राजेश शर्मा, घनश्याम यादव, दिनेश पाठक आदि काफी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।