राजधानी के पश्चिमी छोर पर बसे गांधीनगर में भगवान झूलेलाल का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां पिछले 70 सालों से अखण्ड ज्योति जल रही है, जिसे विभाजन के बाद 1954 में पाकिस्तान से लाया गया था। इन दिनों गांधीनगर के इस मंदिर में भगवान झूलेलाल चालीहा का उत्सव चल रहा है, जहां पिछले 35 दिन से शाम को आरती के बाद भंडारे से सैकड़ों लोग प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। यहां वेदांत संत लालसाईं महाराज ने झूलेलाल चालीहा महोत्सव में शामिल होकर भगवान झूलेलाल की आराधना की। विगत दिवस यहां महा आरती का आयोजन हुआ। जिसमें सिंधी समाज के लीडर और सिंधी सेन्ट्रल पंचायत के पदाधिकारियों को समाज सेवा के लिए सम्मानित किया गया। शोभराजमल लाए थे अखण्ड ज्योति
गांधीनगर के वरिष्ठ समाज सेवी खूबचंद भागचंदानी ने भगवान झूलेलाल मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि विभाजन के समय यहां 1948 से लेकर 1955 तक सिंधी हिन्दुओं के आने का सिलसिला जारी था और 1954 में पाकिस्तान के सक्खर स्थित भगवान झूलेलाल मंदिर में जलने वाली अखण्ड ज्योति को मंदिर के व्यवस्थापक शोभराजमल अपने साथ यहां लाए थे, और तब से यह ज्योति जल रही है एक दिन भी नहीं बुझी। 10 साल से चालीहा महोत्सव
गांधीनगर स्थित झूलेलाल मार्केट के इस झूलेलालन मंदिर में पिछले 10 सालों से 16 जुलाई से 24 अगस्त तक झूलेलाल चालीहा मनाया जा रहा है, जिसमें प्रतिदिन आरती, भजन कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है। बीते साल से यहां प्रतिदिन 40 दिन तक आरती के बाद भंडारा होता है, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हो रहे हैं।
महाआरती व सम्मान कार्यक्रम
रविवार देर शाम यहां महा आरती का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता प्रकाश मीरचंदानी, अभा सिंधी समाज के राष्ट्रीय मुख्य सलाहकार सुरेश जसवानी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश चोटरानी एवं गांधीनगर के समाज सेवी रमेश हिंगोरानी तथा भोजपुरी समाज के अध्यक्ष दिनेश मिश्रा का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया।
आपसी एकता जरूरी- प्रकाश मीरचंदानी
इस मौके पर प्रकाश मीरचंदानी ने कहा कि सिंधी समाज में आपसी एकता एवं भाईचारा जरूरी है। उन्होंने कहा कि विभाजन के दौरान सिंधी समाज ने जो कष्ट झेले हैं, वे किसी से छिपे नहीं है। यह हमारे पुरुषार्थ का नतीजा है कि इतनी तकलीफों के बाद भी सिंधी समाज स्थापित हुआ और आज देश व दुनिया में उसकी एक अलग ही पहचान है। रामायण में भगवान झूलेलाल का उल्लेख
इस मौके पर सुरेश जसवानी ने भगवान झूलेलाल की महिमा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सन् 1007 में भगवान झूलेलाल का अवतरण हुआ लेकिन रामायण में भी वरूणावतार भगवान झूलेलाल का वर्णन है। जब भगवान श्रीराम को लंका पर चढ़ाई के लिए सेतू बनाना था, तब भगवान झूलेलाल बूढ़े ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए और नल व नील दो वानरों की जानकारी दी, जिनके सहारे पुल बनाया गया ओर लंका पर हमला कर सीता को रावण के चुंगल से छुड़ाया गया। इस मौके पर जहां खूबचंद भागचंदानी एवं अशोक प्रेमानी ने अतिथियों का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया। वहीं कार्यक्रम में अशोक भागचंदानी, महेश सडाना, राजकुमार भागचंदानी, सुरेश वाधवानी, किशन रेलवानी, राजा संभानी, रवि चंदानी, मनीष वरलानी, धर्मेन्द्र केवलानी, अंकित कंजानी, सोनू वरलानी, सुरेश रंगवानी, कमलेश ग्वालानी, जीतू शेवकानी, कमल लालवानी, मंघाराम नरसिंघानी के अलावा महिला समाज सेविका द्विया सावलानी, चन्द्रा वासवानी, रंजना भागचंरदानी, वंशिका वाधवानी एवं निकिता संभवानी विशेष रूप से मौजूद रहे। जिन्होंने भजन कीर्तन में भी हिस्सा लिया। यहां मंदिर के पुजारी काका भगवानदास ने आरती एवं पूजा पाठ सम्पन्न करवाया।