शाजापुर क्षेत्र में अच्छी बारिश हो और चारों तरफ हरियाली लहलहाए। इस मनोकामना के साथ गवली समाज ने भुजरिया पर्व मनाया। गुरुवार शाम को एक चल समारोह निकाला गया। जिसमें नाच-गाकर सावन को बिदाई दी गई। वहीं सावन और कन्हैया के लोकगीतों पर समाजजन जमकर झूमे। हर त्योहार मनाने की गवली समाज की अपनी ही परंपरा है। चाहे गोवर्धन पूजा हो या देव उठनी ग्यारस। हर मौके पर अनूठापन दिखाई देता है। ऐसे ही मंगलवार को भी गवली समाज ने अपनी अनूठी परंपरा निभाई। इस बार अवसर था, सावन को विदाई देने वाले भुजरिया पर्व का। प्रकृति को हरा भरा करने वाले सावन की अगुवाई में तो सभी नाचते हैं, लेकिन विदाई में नाच-गाना के पीछे गवली समाज की मान्यता है कि सावन समाज और मवेशियों के लिए भरपूर सौगात देता है, इसलिए उसकी विदाई भी अच्छे से की जानी चाहिए। इसके चलते गुरुवार को भी गवली समाज ने एक चल समारोह निकाला, जिसमें आगे-आगे समाज का पुरूष वर्ग ढोल ताशों की थाप पर नाच रहा था, तो पीछे-पीछे सिर पर भुजरिया (जवारे) लेकर महिलाएं चल रही थीं। इस दौरान महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं और सावन से अगले वर्ष फिर से जोर-शोर से बारिश की कामना भी कर रही थीं। चल समारोह से अलग होकर महिलाएं नदी पर गई और भुजरिया ठंडे किए। जिसके बाद शुरू हुआ समाज के छोटों द्वारा बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने का सिलसिला, जो देर रात तक चलता रहा। यह है मान्यता…
गवली समाज के युवा समाजसेवी विष्णु गवली, महेश गवली व अरूण गवली ने बताया कि गवली समाज की आजीविका गौपालन और खेती पर निर्भर रहती है। सावन में जब बादल बरसते हैं तो खेत लहलहा उठते हैं। साथ ही गौवंश के दूध में वृद्धि होती है, जिससे समाज को आर्थिक लाभ पहुंचता है। साथ ही चारे के उत्पादन से पशुओं के लिए सालभर के आहार की चिंता भी मिट जाती है। इन्हीं सब बातों के लिए प्रकृति और सावन को धन्यवाद देते हुए भुजरिया पर्व मनाया जाता है। महीने भर मनती हैं खुशियां
भुजरिया कहते हैं जवारे को, इस पर्व के लिए समाजजन नाग पंचमी को अपने-अपने घरों में जवारे उगाते हैं। साथ ही सावन को बिदा करने के लिए समाजजन पूरे माह नाच गाना करते हैं। अपने घरों में उगाए भुजरियों को समाजजन राखी के दिन राखी बांधते हैं और अगले साल फिर से हरियाली और खुशी बरसाने की कामना करते हैं। भुजरिया पर्व के दिन महिलाएं सिर पर जवारे रख कर मंगल गीत गाते हुए चलती हैं, गीत और नाच का यह सिलसिला समाप्त होता है। इसके बाद शाम को समाज के छोटे अपने बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और एक-दूसरे के घर जाकर भुजरिया पर्व की शुभकामनाएं देते हैं।