ग्रामीण क्षेत्रों में कजलियों का त्योहार काफी उत्साहपूर्ण माहौल में मनाया जाता है। कजलियों को विसर्जन करने के लिए लोग अपने घर से निकल कर नदियों के घाटों में कजलियां विसर्जन किया और फिर अपने घर लौटकर एक दूसरे को कजलियां भेंटकर पर्व की बधाई दी। गौरतलब है कि श्रावन महीना लगते ही प्रकृति में हरियाली छा जाती है, कजलियां इस बात का प्रतीक है कि खेतों में हरियाली और घरों में सुख समृद्धि रहे। आपसी मनमुटाव व भेदभाव को मिटाकर मेलजोल बढ़ाने के लिए कजलियां का पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार पर लोग कामना करते हैं कि उनके बीच संबंध हमेशा मधुर बने रहें। कजलियां की तैयारी करने के लिए पहले से महिलाएं घर में अन्न रखकर उसका पूजन करती हैं और त्योहार पर एक दूसरे को सम्मान करती हैं। यह पर्व ग्रामीण अंचलों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था, मगर आज आधुनिकता की दौड़ में और लोगों की व्यस्तता ने इस त्योहार को कुछ घरों तक ही समेट दिया है। गेहूं, जौ, बांस के बर्तन और खेत की मिट्टी इस त्यौहार में खास महत्व रखते हैं। महिलाएं नागपंचमी के दूसरे दिन खेत से मिट्टी लेकर आतीं और बांस के बर्तन में गेहूं या जौ बोती है। रक्षाबंधन तक इन्हें पानी दिया जाता, इनकी देखभाल की जाती, इसमें उगने वाले जौ या गेहूं के छोटे-छोटे पौधों को ही कजलियां कहा जाता है। इस पर्व में कजलियां लगाकर लोग एक-दूसरे के लिए कामना करते हैं। कि सब लोग कजलियां की तरह खुश और धन-धान्य से भरपूर रहे। इसलिए यह पर्व सुख और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।