अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज के चातुर्मास के धर्म प्रभावना रथ के तीसरे पड़ाव के छठे दिन भक्तामर महामंडल के चौथे दिन सोमवार को विधान में अर्घ्य चढ़ाकर भगवान आदिनाथ की आराधना की गई। विधान प्रारंभ होने से पहले भगवान अभिषेक, शांतिधारा की गई। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि अभिषेक, शांतिधारा करने का लाभ विधान के मुख्य पुण्यार्जक सुनील, रश्मि, उन्नति गोधा, आयुष उर्वी बड़जात्या को प्राप्त हुआ। संजय पापड़ीवाल, कमलेश जैन ने बताया कि चौथे दिन चार काव्य की आराधना करते हुए 224 अर्घ्य समर्पित किए गए। चार दिन कुल 896 अर्घ्य समर्पित किए गए। विधान 28 अगस्त तक चलेगा। सभा में चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन मुख्य पुण्यार्जक द्वारा किया गया। मुनिश्री का पाद पक्षालन रेखा संजय जैन, कमलेश टीना जैन व सुनील गोधा परिवार द्वारा किया गया। शास्त्र भेंट प्रवीण निधि सेठी, धर्मेंद्र रेणु पंचोली द्वारा किया गया। इस अवसर पर मुनिश्री ने बताया कि उज्जैन नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे। बलि, नमुचि, बृहस्पति और प्रहलाद उनके मंत्री थे। उनकी धर्म पर श्रद्धा नहीं थी। एक बार उस नगरी में आचार्य अकम्पन का 700 मुनियों के संघ सहित आगमन हुआ। राजा भी अपने मंत्रियों के साथ गए और मुनियों को वंदन किया। मुनि ध्यान में लीन थे। राजा उनकी शांति और तप को देखकर प्रभावित हुए, लेकिन मंत्री कहने लगे कि महाराज, इन जैन मुनियों को कोई ज्ञान नहीं है, इसलिए मौन का ढोंग कर रहे हैं। श्रुतसागर नाम के मुनिश्री को मुनि संघ की निंदा सहन नहीं हुई, इसलिए उन्होंने मंत्रियों से वाद-विवाद किया और उन्हें चुप कर दिया। राजा के सामने अपमान होने से मंत्री रात में मुनि को मारने गए, लेकिन जैसे ही उन्होंने तलवार उठाई, नगर देवी ने उन सभी को उसी अवस्था में जड़ कर दिया। सुबह लोगों ने यह दृश्य देखा। राजा ने उन्हें राज्य से बाहर कर दिया। चारों मंत्री हस्तिनापुर के राजा पद्म राय की शरण में गए। पद्मराय के भाई विष्णु कुमार जैन मुनि थे। हस्तिनापुर के राजा का शत्रु सिंहरथ नाम का राजा था। मंत्री बलि की युक्ति से पद्मराय को विजय प्राप्त हुई और उन्होंने मंत्री से इनाम मांगने को कहा। मंत्री ने कहा कि जब आवश्यकता होगी तब मांग लूंगा। इधर आचार्य अकम्पन महाराज 700 मुनियों के संघ सहित विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे। मंत्रियों ने उन्हें मारने की साजिश रची। बलि ने राजा से इनाम मांगते हुए कहा कि महाराज हमें यज्ञ करना है, इसलिए आप सात दिन के लिए राज्य हमें सौप दें। बचनबद्धता के कारण राजा ने उन्हें राज्य सौंप दिया। चारों मंत्रियों ने मुनि संघ के चारों ओर पशु, हड्डी, मांस, चमड़ी के ढेर लगाकर उनमें आग लगा दी। बलि के अत्याचार से हाहाकार मच गया। लोगों ने प्रतिज्ञा की कि मुनियों का संकट दूर होगा तो उन्हें आहार कराकर ही भोजन ग्रहण करेंगे। यह बात विष्णु कुमार मुनि को पता चली तो वे हस्तिनापुर गए और एक ब्राह्मण पंडित का रूप धारण कर बलि राजा के सामने उत्तमोत्तम श्लोक बोलने लगे। बलि राजा पंडित से खुश हुआ और वर मांगने को कहा। विष्णु कुमार ने तीन पग जमीन मांगी। विष्णु कुमार ने विराट रूप धारण किया और एक पग सुमेरु पर्वत पर व दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर रखा और बलि राजा से कहा कि बोल अब तीसरा पग कहां रखूं? तीसरा पग रखने की जगह नहीं दी तो तेरे सिर पर रखकर तुझे पाताल में उतार दूंगा। देवों और मनुष्यों ने विष्णु कुमार मुनि को विक्रिया समेटने को कहा। राजा बने बलि सहित चारों मंत्रियों ने भी क्षमा मांगी। इस प्रकार 700 जैन मुनियों की रक्षा हुई। जिस दिन यह घटना घटी, वह श्रावण सुदी पूर्णिमा थी। इस दिन 700 मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ और उनकी रक्षा हुई। अतः वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सभी ने इस पर्व पर परस्पर रक्षा करने का बंधन बांधा, जिसकी स्वीकृति त्योहार के रूप में अब तक चली आ रही है। देव, शास्त्र, गुरु और तीर्थ की रक्षा का संकल्प दिलाया मुनिश्री ने कहा कि आज के दिन यह संकल्प करो कि देव शास्त्र गुरु और तीर्थ की रक्षा करेंगे। इन चारों के प्रति अपना तन, मन, धन से समर्पण रखेंगे, तब रक्षाबंधन का यह पर्व सार्थक होगा। एक सच्चा श्रावक वह है जो दूसरों को रोजगार दे संस्कार और संस्कृति को सुरक्षित रखें लोगों को धर्म से जोड़कर रखें। यह रक्षाबंधन का पर्व मुनियों के प्रति आस्था, श्रद्धा और विश्वास को अधिक दृढ़ करने का पर्व है।