थाना बना भाई का घर:इंदौर के संयोगितागंज थाने में लगी महिलाओं की भीड़, टीआई सतीश पटेल का राखियों से भरा हाथ

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शहर के संयोगितागंज थाने में इन दिनों महिलाओं की भीड़ देखी जा रही है। महिलाओं के जत्थे के जत्थे थाने पहुंच रहे हैं। ये महिलाएं किसी प्रदर्शन के लिए नहीं बल्कि हाथों में पूजा की थाल लिए थाने में राखी बांधने के लिए पहुंच रही हैं। सामान्यत: थाने और पुलिस से लोग दूर ही रहना पसंद करते हैं, महिलाएं तो थाना परिसर में प्रवेश करने से भी हिचकिचाती और डरती हैं। लेकिन संयोगितागंज थाने का नजारा अलग था, ये महिलाएं उसी तरह बेखौफ थाने पहुंच रही हैं, जैसे वे अपने भाई के घर राखी बांधने जाती हैं।… हां, इन्हें टीआई सतीश पटेल ने बहन जो बनाया है। यहां वे टीआई सतीश पटेल और अन्य पुलिस कर्मियों को राखी बांध रही हैं। पटेल का हाथ राखियों से बार-बार भर जाता है। थाने से इन बहनों को तोहफे में मिल रहा है पौधा और सुरक्षा का वादा। इस बारे में टीआई सतीश पटेल से भास्कर ने बात की और जाना कि यह क्या माजरा है और यह सिलसिला कब शुरू हुआ? रक्षाबंधन एक अभियान में कैसे तब्दील हो गया? 2016 से एक वाकये के बाद इसकी शुरुआत हुई और यह सिलसिला बढ़ते-बढ़ते अब एक अभियान में तब्दील हो गया। मैं सिवनी जिले के छापारा थाने में पोस्टेड था। मुझे 2016 में राखी के दिन छुट्‌टी नहीं मिली। मैंने देखा कुछ महिलाएं पूजा की थाली लेकर वहां से निकल रही हैं। मैंने अपनी पत्नी से कहा कि इन्हें बुला लेते हैं और इनसे राखी बंधवा लेता हूं। इसके बाद मैंने उन महिलाओं से राखी बंधवाई। यहां से यह सिलसिला शुरू हुआ। मुझे यह कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा और मैंने व्हाट्सएप ग्रुप्स में यह संदेश पोस्ट किया कि महिलाएं पुलिस को अपना भाई समझें और राखी से जन्माष्टमी तक थाने में आकर मुझे राखी बांध सकती हैं। पहले स्कूल-कॉलेज की लड़कियां, इसके बाद मोहल्ले की महिलाएं और फिर गांव की महिलाएं मुझे राखी बांधने के लिए आने लगीं। इसके बाद तो यह संख्या इतनी बढ़ गई कि इन महिलाओं को थाने बुलाने के बजाय मैं ही गांव में जाकर राधी बंधवाने लगा। इसके बाद तो यह मुहिम सामुदायिक पुलिसिंग का अहम हिस्सा बन गई। हमारे वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसमें मार्गदर्शन दिया और इससे गांवों में बहुत अच्छा माहौल बना। लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास भी बढ़ा। गांवों में इन्हीं बहनों को साथ लेकर हमने नशा विरोधी अभियान चलाया और इसके बहुत नतीजे देखने को मिले। …और आरोपी के परिवार को बढ़ा भरोसा एक आरोपी को हमने पूछताछ के लिए थाने बुलाया था। उसका भाई, मां और पत्नी थाने आए, तो उन्होंने देखा कि मेरे हाथ में बहुत-सी राखियां बंधी हैं। मैं उनसे बात करते हुए राखियां खोलकर रखता जा रहा था। इस बारे में उन्होंने पूछा तो मैंने बताया कि ये राखियां बांधने वाली इस क्षेत्र की महिलाएं हैं। मैं एक भाई के रूप में जो भी मदद हो सकेगी करूंगा। इसके बाद आरोपी की पत्नी ने एक राखी उठाकर मुझे राखी बांध दी और पुलिस के प्रति पूरा विश्वास जताते हुए अपने आरोपी पति को थाने ले आई। इंदौर में भी महिलाएं राखी बांधने लगातार आ रही हैं, यह सिलसिला गणेशोत्सव तक चलेगा। राखी बांधने ये महिलाएं इतनी बड़ी संख्या में आ रही हैं, इससे उनमें पुलिस के प्रति भरोसा बढ़ा है कि यदि कोई मुसीबत आई तो पुलिस उनकी उचित मदद करेगी। पुलिस से सीधा कॉन्टेक्ट रहता है और पुलिस से वे बिना किसी संकोच के बात कर सकते हैं। क्या इस अभियान का कोई रिकॉर्ड भी दर्ज हुआ है? हां, पुलिस को राखी बांधने के इस अभियान को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। अभी तक करीब 18 हजार महिलाएं मुझे राखी बांध चुकी हैं। मेरे लिए गर्व करने की बात है कि तत्कालीन गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने फोन करके मुझे मेरे काम के लिए शाबाशी दी थी। क्या कोई ऐसी दुविधा की स्थित बनी है, जिसमें किसी बहन ने आपको अपने भाई होने का वास्ता देकर कानून से हटकर कोई मदद मांगी है? बहनों की अपेक्षा तो बहुत हो सकती हैं, लेकिन पुलिस में होने के कारण हम कानून से बंधे होते हैं। यह बात बहनें भी जानती हैं और इस बात का ध्यान रखती हैं। इसी तरह बालिकाओं और महिलाओं के कई घरेलू मामलों में समझाइश पर कई विवाद सुलझ जाते हैं। क्या इंदौर में इन बहनों की मदद से कोई अपराधी पकड़ में आया है? मैं यह तो नहीं कहूंगा कि इन बहनों की मदद से कोई अपराधी पकड़ में आया है लेकिन कई सुराग मिले हैं और हमें भी किसी न किसी रूप में मदद मिल ही जाती है। हमारा ध्येय इन बहनों की सुरक्षा पहले हैं। ​​​​​​​सामुदायिक पुलिस के प्रमुख रूप से कौन-कौन से अभियान हैं? खास तौर पर सामुदायिक पुलिसिंग में हमने नशे को ना…, पुलिस हमारा भाई और परिवार तोड़ो मत, जोड़ो अभियान को महत्व देने के बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं। हम पुलिस दल के साथ कई बस्तियों में पहुंचे और इन अभियानों को मजबूती दी है।आपके सामुदायिक पुलिसिंग के प्रयासों को लेकर क्या कोई स्टडी हुई है?मैं खरगोन जिले से इंदौर पढ़ने आया था। जिन आईएएस-आईपीएस की कोचिंग क्लासेस में पढ़ने का मैं सपना देखता था, मैं कभी स्टडी के लिए वहां जा नहीं पाया, अब वहां जनरल नॉलेज के विषय में चर्चित चेहरे के रूप में मेरे कामों के बारे में पढ़ाया जा रहा है। यह मेरे लिए बड़ी बात है। ​​​​​​​जिन बहनों ने आपको राखी बांधी है, आपका तबादला होने पर वे अगली राखी पर क्या करती हैं? 2016 में जिन बहनों ने थाना छपारा में मुझे राखी बांधी थी, वे 2017 में मंडला के कान्हा किसली और 2019 में 120 किलोमीटर दूर जबलपुर जिले के थाना कुंडम पहुंचीं और मुझे राखी बांधी। इनमें ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं थीं, कई महिलाएं अपने पति को साथ लेकर मुझे राखी बांधने आईं।