नीतीश- संसार में इतना भेद है, फिर अद्वैत क्या है?:श्रीएम- हम सब माया में घिरे हैं… जब इससे परे जाते हैं, तब परम् ब्रह्म की ओर अग्रसर होते हैं…

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संसार में इतना भेद है, फिर अद्वैत क्या है? इसका उत्तर देते हुए श्रीएम ने कहा कि मनुष्य अपनी इंद्रियों के बहुत अधिक वश में हैं, इसलिए हम नाम आदि पहचानों के साथ जीते हैं। द्वैत भाव में जीते हैं। यह अचानक संभव भी नहीं कि इंद्रियों के वशीभूत होते हुए हम अद्वैत का अनुभव कर सकें। अद्वैत ब्रह्म को अनुभूत करने के लिए इंद्रियों से परे जाना होगा। जब हम इस माया से परे जाते हैं, तब हम परम् ब्रह्म को जानने की ओर अग्रसर होते हैं जो कि एकमात्र सत्य है। इस सत्य को खोजने के लिए विवेक और वैराग्य होना आवश्यक है। यह संवाद रविवार को भारत भवन में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित दो एकात्म पर्व के समापन समारोह में हुआ। इसमें प्रख्यात वेदांती, पद्म भूषण श्रीएम ने विख्यात टेलीविजन अभिनेता व वेदांत साधक नितीश भारद्वाज के संयोजन में वेदांत की जिज्ञासाओं पर रोचक संवाद किया। संसार शांत है, तब शिव है शिव और शक्ति की महिमा बताते हुए श्रीएम ने कहा कि जब सारा संसार शांत है, उसमें कोई गति नहीं होती तब वह शिव है। जैसे ही संसार में किसी भी तरह की गति होती है, सक्रियता होती है, तब वह शक्ति के कारण होती है। श्रोताओं के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीएम ने कहा कि वेदांत अध्ययन या आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्वच्छता अत्यधिक आवश्यक है। चाहे वह मन की हो, शरीर की हो या खासकर वातावरण और पर्यावरण की। संगीत एकाग्रता लाता है ध्यान प्रक्रिया के विषय में संबोधित करते हुए श्रीएम ने कहा कि ध्यान की कोई एक स्पष्ट प्रक्रिया नहीं बतलाई गई है। जो लोग ध्यान करना चाहते हैं, वह संगीत को माध्यम बना सकते हैं। यह ध्यान की पहली सीढ़ी है। कायर्क्रम में प्रमुख सचिव संस्कृति शिवशेखर शुक्ला, पद्मश्री कपिल तिवारी, पूर्व सीबीआई निदेशक ऋषि प्रसाद शुक्ला सहित बौद्धिक जगत के श्रोता शामिल हुए। सभागार में कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर न्यास के प्रकल्प अद्वैत युवा जागरण शिविर के बाद दीक्षित शंकर दूतों के समूह ने टोटकाष्टकम् का गान कर सभी को मंत्रमुग्ध किया। अंत में आयोजन का आभार डॉ. भावना व्यास ने माना।