‘7 अगस्त की सुबह 11.30 बजे मेरे पास एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया। उसने मुझसे पूछा कि क्या आपका कोई और मोबाइल नंबर है, मेरे मना करने पर उसने नंबर दूसरे शख्स को ट्रांसफर कर दिया। दूसरी तरफ से आवाज आई कि मैं मुंबई साइबर क्राइम से बोल रहा हूं। आपके आधार कार्ड नं. से मुंबई के एचडीएफसी बैंक में एक खाता खोला गया है। उस खाते से करोड़ों रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध लेन-देन हुआ है।इसके बाद मैं दो दिन तक इन ठगों के कब्जे में रहा, उन्होंने मुझसे 51 लाख रु. ठग लिए।’ ये आपबीती उज्जैन के रहने वाले रिटायर्ड बैंक अधिकारी राकेश कुमार जैन की है। साइबर ठगों ने राकेश को डिजिटल हाउस अरेस्ट किया था। इससे दो दिन बाद 9 अगस्त को इंदौर के राकेश गोयल के साथ भी ऐसी ही वारदात हुई। ठगों ने उनसे 39 लाख रु. वसूल किए। मप्र में ये केवल दो घटनाएं नहीं है। एक महीने पहले भोपाल के रिटायर्ड लैक्चरर से साइबर ठग इसी तरह से डेढ़ करोड़ रु. की ठगी कर चुके हैं, तो ग्वालियर की जीवाजी विश्वविद्यालय की महिला प्रोफेसर सुजाता बापट से 38 लाख रु. वसूल किए थे। इंदौर साइबर सेल के मुताबिक इस साल के शुरुआती छह महीने में ही डिजिटल हाउस अरेस्ट के एक दर्जन केस आ चुके हैं जिसमें साइबर ठगों ने करीब 2 करोड़ रु. की ठगी की है। पूरे प्रदेश में ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। डिजिटल हाउस अरेस्ट के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य साइबर सेल ने एडवाइजरी भी जारी की है, लेकिन मामले कम नहीं हुए हैं। दैनिक भास्कर ने साइबर एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट से बात कर समझा कि आखिर लोग कैसे साइबर ठगों के जाल में फंस जाते हैं? ये लोगों के दिमाग को कैसे अपने कंट्रोल में करते हैं। इससे बचने का क्या तरीका है। पढ़िए रिपोर्ट तीन केस से समझिए कैसे हुई डिजिटल हाउस अरेस्ट से ठगी केस1: मनी लॉन्ड्रिंग का डर दिखाया, 51 लाख रुपए ऐंठे यह फ्रॉड हुआ उज्जैन के रहने वाले 65 साल के रिटायर्ड बैंक अधिकारी राकेश कुमार जैन के साथ । सेठी नगर के पास नीरा हवेली में रहने वाले राकेश कुमार जैन एसबीआई बैंक मैनेजर पद से रिटायर हुए हैं। वे और पत्नी अकेले रहते हैं। दो बेटे हैं जो बाहर जॉब करते हैं। 7 अगस्त की सुबह 11:39 बजे राकेश कुमार जैन के पास मोबाइल नंबर 8653891750 से एक कॉल आया। उस समय वे अपने रोजमर्रा के काम में बिजी थे। राकेश ने जैसे ही कॉल अटेंड किया, खुद को सीबीआई अफसर बताते हुए कॉल करने वाले ने पूछा आपके पास कोई और मोबाइल नंबर है। राकेश ने कहा नहीं.. तब इस शख्स ने कहा कि आपका ये नंबर ब्लॉक किया जा रहा है और उसने फोन कट कर दिया। राकेश को कुछ समझ नहीं आया। कुछ देर बाद उनके पास एक वीडियो कॉल आया। उन्होंने इसे अटेंड किया तो मोबाइल स्क्रीन पर पुलिस की वर्दी पहना एक शख्स दिखाई दिया। उसने खुद का नाम राकेश कुमार बताते हुए कहा कि मैं साइबर क्राइम मुंबई का अधिकारी हूं। उसने कहा आपके आधार कार्ड नं. से एचडीएफसी बैंक मुंबई में एक खाता खोला गया है। उस खाते से करोड़ों रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध लेन-देन हुआ है। आपकी आईडी से खाता खोला गया है, इसलिए आप संदिग्ध व्यक्ति हैं। ये भी कहा कि हमें सही अपराधी को पकड़ना है, आप हमें सहयोग करें। इसके बाद ठगों ने राकेश कुमार के वॉट्सऐप नंबर पर डिजिटल अरेस्ट का एक लेटर भेजा और किसी को भी न बताने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने राकेश जैन को स्काइप ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा और इसके जरिए मॉनिटरिंग करने लगे। एफडी तुड़वाकर पैसा अकाउंट में ट्रांसफर करवाया राकेश जैन ने कहा कि ठगों ने अगले दिन 8 अगस्त को उनकी 50 लाख रु. की एफडी की जानकारी ली। इस एफडी को तुड़वाकर सेविंग बैंक अकाउंट में पैसा जमा कराया। इसके बाद गाजियाबाद के बंधन बैंक के अकाउंट नंबर 20100030362097 में जमा करवा लिया। ये अकाउंट नंबर महाकाल नाम की फर्म का था। इसके बाद मुझे कहा कि सहयोग नहीं करेंगे तो अरेस्ट कर लिया जाएगा। ये भी कहा कि सीबीआई अधिकारी निगरानी कर रहे हैं। उसके बाद 9 अगस्त को ठगों ने उनसे और 10 लाख रु. ट्रांसफर करने का दबाव बनाया। मुझे एहसास हुआ कि अब मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है, इसलिए मैंने उनकी कॉल अटेंड करना बंद की। केस2: मुंबई पुलिस बनकर,बैंक अधिकारी से 39.60 लाख रुपए ठगे ये मामला हुआ इंदौर के महालक्ष्मी नगर में रहने वाले एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी राकेश कुमार गोयल के साथ। राकेश कुमार बताते हैं कि कहते हैं कि 11 जुलाई को मेरे पास एक कॉल आया था। सामने वाले शख्स ने खुद को मुंबई के अंधेरी थाने का जवान बताया और बोला कि मेरे खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का वारंट जारी हुआ है। इसके बाद कॉल को ईडी ऑफिस में ट्रांसफर किया गया। मुझसे कहा गया कि मेरे नाम से एक बैंक अकाउंट खोला गया है, जिसका इस्तेमाल 8 करोड़ 20 लाख रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग में किया गया है। यह पैसा बच्चों की तस्करी में इस्तेमाल हुआ है। स्काइप ऐप से 24 घंटे वीडियो कॉल पर रखा गोयल के मुताबिक उन्हें स्काइप ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा। उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस दिखाई, जिसमें दो व्यक्ति दिख रहे थे। एक तीसरे शख्स को सामने लाया गया और कहा कि इसके घर से मिली बैंक पासबुक से 8 करोड़ 20 लाख रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग का पता चला है। जालसाजों ने गोयल को डरा-धमका कर उनके एसबीआई के अकाउंट से 21 लाख रुपए न्यू इंडिया कंपनी के अकाउंट में ट्रांसफर करवाए। अगले दिन पत्नी के अकाउंट से भी 18 लाख रुपए डीपीडी एसोशिएट के खाते में ट्रांसफर करवा लिए। तीसरा मामला : इंजीनियर के पिता को किया टारगेट, मगर बच गए यह मामला उज्जैन के सचिन गोयल के साथ हुआ। गोयल सुबह पूजा कर रहे थे तब उनके पास 10 अगस्त की सुबह 10.44 पर पाकिस्तान के नंबर 92-3042854136 से मोबाइल पर वॉट्सऐप कॉल आया। कहा- आपके बेटे के साथ उसके चार दोस्तों को क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया है। सचिन ने बताया कि वीडियो कॉल करने वाले की प्रोफाइल में एक पुलिस अधिकारी का फोटो लगा हुआ था। जैसे ही कॉल उठाया तो सामने से एक पुलिस की वर्दी में आदमी बोला कि आपके बेटे और उसके चार दोस्तों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। सचिन गोयल ने उनसे कहा कि मुझे बेटे से बात करनी है। साइबर ठगों ने सचिन गोयल को धमकाते हुए कहा कि यह हमारा सीक्रेट मिशन है। हम बात नहीं करवा सके। जैसा बताया जा रहा है वैसा करें वरना मुसीबत में फंस जाएंगे। सचिन कहते हैं कि जब मैं बातचीत कर रहा था तो आसपास चीखने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। उन्होंने ये भी कहा कि हम किस तरह से थर्ड डिग्री का इस्तेमाल कर रहे हैं इससे आप समझ चुके हैं। ठगों ने कहा कि एक लिंक भेज रहे हैं उस क्लिक करें और जैसा हम कह रहे हैं वैसा करें।सचिन बेटे से बात करवाने पर अड़े रहे तो ठगों ने कॉल काट दी। अब साइबर एक्सपर्ट कामाक्षी शर्मा से समझिए कैसे बचा जा सकता है डिजिटल फ्रॉड से… सवाल: डिजिटल अरेस्ट में किस तरह के कॉल आते हैं? एक्सपर्ट: डिजिटल हाउस अरेस्ट में अक्सर वॉट्सऐप कॉल आता है। कॉल करने वाला खुद को सीबीआई ,एनआईए इनकम टैक्स या नॉर्मल पुलिस अधिकारी बताता है। इनका मकसद होता है डराना। सवाल: ये किस तरह से डराते हैं एक्सपर्ट: अलग-अलग तरह से डराते हैं जैसे कोई पार्सल भेजने की बात करता है। कहता है कि उसमें ड्रग्स हैं, या फिर मनी लॉन्ड्रिंग या गलत ट्रांजैक्शन हुए है। ये भी कहते हैं कि मोबाइल नंबर से अवैध खातों का संचालन हो रहा है। सवाल: इनके पास लोगों का डेटा कहां से आता है? एक्सपर्ट: किसी को टारगेट करने से पहले ये उसकी पूरी इन्फॉर्मेशन हासिल करते हैं। सोशल मीडिया अकाउंट से स्टेटस पता करते हैं। क्रेडिट कार्ड यूज करता है तो उस बैंक से बैंक डिटेल की इन्फॉर्मेशन हासिल करते हैं। सवाल: ये किन लोगों को टारगेट करते हैं? एक्सपर्ट: ज्यादातर हाई प्रोफाइल लोग, जैसे डॉक्टर, बिजनेसमैन, इंजीनियर, प्रोफेसर या फिर रिटायर्ड बैंक अधिकारी। जिनके पास अच्छी खासी सेविंग होती है। सवाल: कितने दिनों तक डिजिटल हाउस अरेस्ट करते है ? एक्सपर्ट: इसका कोई ड्यूरेशन नहीं है। जब तक कि अमाउंट न मिले। एक दिन में वो इसे ले सकते हैं या फिर 2 दिन से लेकर 10 दिन भी हो सकता है। कुछ केस ऐसे भी हैं जिनमें 20 दिन तक डिजिटल हाउस अरेस्ट किया गया है। साइकोलॉजिस्ट बोले- अपने दिमाग पर डर को हावी न होने दें डिजिटल हाउस अरेस्ट के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें डर सबसे प्रमुख कारण है। डर की वजह से लोगों ने ठगों के खाते में पैसे जमा किए। इसे लेकर साइकोलॉजिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि डर इसलिए होता कि हम खतरे को भांप कर उस पर रिएक्ट कर सकें। मगर, डर यदि हावी हो जाए तो फिर इसका रिएक्शन उल्टा होता है। वे बताते हैं कि डर के दौरान ब्रेन का संज्ञान लेने वाला हिस्सा कम काम करने लगता है, वहां इमोशनल पार्ट हावी हो जाता है।जब कोई भी इंसान इस कंडीशन में पहुंच जाता है तो उसके दिमाग को कंट्रोल करना बेहद आसान होता है। वैसे भी किसी तरह की प्रशासनिक या कानूनी कार्रवाई से आम आदमी को डर ही लगता है। आम आदमी की सोच है कि प्रशासन या कानून से जुड़ी एजेंसियों की तरफ से कॉल आया है इसका मतलब कुछ न कुछ गड़बड़ है। जो ठग होते हैं वे इस तरह से तैयारी करते हैं कि आप और ज्यादा डरने लगे। जब व्यक्ति डरने लगता है तो उनके लिए उसे कंट्रोल करना बेहद आसान होता है। वे उसे अपने कब्जे में ले लेते हैं।