हाल ही में एमपी हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों की नियुक्तियां हुईं। इनमें सालों से सत्ताधारी दल के लिए काम कर रहे वकीलों को दरकिनार कर दिया गया। संगठन की ओर से करीब 18 नाम सरकारी वकील के लिए भेजे गए थे, लेकिन सिर्फ एक वकील ही सरकारी एडवोकेट बनने का सुख हासिल कर पाए। बाकी 17 को निराशा हाथ लगी। इस लिस्ट के आने के बाद रूलिंग पार्टी की लीगल सेल साइलेंट मोड पर है। विरोधी दल के छोटे-मोटे बयानों को लेकर पुलिस थाने की तरफ दौड़ लगाने वाली लीगल सेल ने उन बयानों को भी जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया, जिसमें बांग्लादेश जैसे हालात भारत में भी बनने की बात कही गई थी। नतीजा, लीगल सेल की ओर से इस मामले में एक भी शिकायत पुलिस तक नहीं पहुंची, न ही विरोध स्वरूप चिट्ठी लिखने जैसा रस्मी काम किया। लोकसभा चुनाव में 40 से ज्यादा शिकायतें लीगल सेल ने की थीं। जिन पर इलेक्शन कमिशन और एडमिनिस्ट्रेशन ने एक्शन भी लिया था। मुखिया की परिक्रमा… आदत जो छूटती नहीं चुनाव के दौरान एमपी के सियासी समंदर में उठे ज्वार-भाटे में कई चेहरे इधर से उधर हो गए थे। कांग्रेस के कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए। पार्टी का दिनभर पक्ष रखते हुए सरकार को कोसने वाले नेताओं को दलबदल के बाद वही जिम्मेदारी सत्ताधारी दल में मिली, लेकिन अब पार्टी के ही लोगों को दलबदल कर आए नेताओं का पुराना कल्चर रास नहीं आ रहा। दरअसल, दलबदल कर आए नेता पार्टी के मुखिया के चेंबर के बाहर ही चक्कर लगाते रहते हैं। पार्टी में इस बात की चर्चा है कि इनकी पुरानी पार्टी के कल्चर से ये लोग बाहर नहीं आए हैं। हालांकि, इन्हें एक-दो मर्तबा नसीहत भी मिल चुकी है, लेकिन वर्षों की आदत आखिर इतनी जल्दी छूटे कैसे? मंत्रियों को नहीं थी प्रोग्राम की खबर, गलती कहां हुई हाल ही में राजधानी भोपाल में बेटियों का एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। इसके आमंत्रण पत्र पर एजुकेशन डिपार्टमेंट के दो मंत्रियों के नाम बतौर अतिथि लिखे गए थे। इस कार्यक्रम में ‘सरकार’ मुख्य अतिथि थे, लेकिन जब प्रोग्राम हुआ तो दोनों मंत्री नहीं पहुंचे। विरोधियों ने जब कार्ड की फोटो पोस्ट कर सवाल उठाए तो पड़ताल हुई। एक मंत्री ने कहा कि उन्हें इस प्रोग्राम की सूचना ही नहीं थी। वे अपने क्षेत्र में पहले से तय कार्यक्रम में थे। इस प्रोग्राम में गौर करने वाली बात ये है कि मध्यप्रदेश देश में पहला ऐसा राज्य बना जिसने बेटियों के खातों में सेनेटरी पैड खरीदने के लिए डायरेक्ट कैश बेनेफिट (DBT) किया है, लेकिन दो विभागों के अफसरों में से कोई इस बात को बता नहीं पाया। और तो और सरकार को भी इस उपलब्धि की जानकारी नहीं दी गई। मैं भरत की तरह खडाऊं रखकर काम कर रहा हूं बीजेपी के एक पूर्व सांसद अक्सर अपनी पार्टी को आईना दिखाते रहते हैं। संगठन से लेकर सरकार तक उनके बयानों के कारण कई मर्तबा बैकफुट पर होते रहे हैं, लेकिन नेतृत्व परिवर्तन के बाद उनमें काफी बदलाव दिखा है। हाल ही में एक सम्मान समारोह आयोजित हुआ। इस प्रोग्राम में पूर्व सांसद ने सरकार की तरफ देखकर कहा- यहां के असली कर्ताधर्ता आप हैं, मैं तो भरत की तरह खड़ाऊ रखकर काम कर रहा हूं। आप राम हैं, मैं भरत हूं। पूर्व सांसद जी ने सरकार के साथ की गई अयोध्या की यात्रा का भी मंच से जिक्र किया। बिना पावर के मंत्री, हर काम पूछकर करना होगा बात हो रही है एक राज्य मंत्री की। राज्य मंत्री को कैबिनेट मंत्री की ओर से जो विभागीय जिम्मेदारी सौंपी गई है, इससे वे खुश नहीं हैं। मंत्री समर्थकों का कहना है कि विभाग के कैबिनेट मंत्री ने पेंशन और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के ट्रांसफर के पावर देकर राज्य मंत्री को अपेक्षा के मुताबिक पावर डेलिगेट नहीं किए हैं। इसमें भी हर काम के बाद कैबिनेट मंत्री से मंजूरी भी लेना पड़ेगी। सुना है मंत्री ने दिल्ली भी दस्तक दी थी। हालांकि यह साफ नहीं हो पाया कि गुहार लगाने का मौका मिला या बात नहीं रख पाए। अपनी इमेज बदलना चाहती हैं लेडी अफसर एक महिला अफसर इस बात को लेकर परेशान हैं कि मीडिया में उनकी छवि निगेटिव बन गई है। वे ऐसा नहीं चाहतीं कि मीडिया उनके प्रति नकारात्मक भाव रखे। अब महिलाओं से संबंधित विभाग की जिम्मेदारी निभाने के दौरान ये अधिकारी मीडिया में अपनी इमेज बदलना चाहती हैं। बता दें कि ये महिला अफसर वही हैं जो कभी नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान जिले के मुखिया के तौर पर कलश सिर पर रखकर यात्रा में शामिल होने के चलते मीडिया में सुर्खियों में आई थीं। और अंत में… मीडिया में राहत के आंकड़े जारी होने से नाराज होते हैं अफसर सरकार भले ही अपने काम और जनता को दी जाने वाली सेवाओं का गाना बजाना कर जनता तक हर बात पहुंचाना चाहती है, लेकिन अफसरों की वर्किंग इसके उलट है। एक आईएएस अधिकारी जो इसी माह विदेश गए हैं, उनके विभाग छोड़ने के पहले उनके अधीन काम करने वाली महिला अफसरों ने अधीनस्थ अधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि बाढ़ राहत के आंकड़े किसी भी स्थिति में मीडिया में नहीं जाने चाहिए। ये अधिकारी न तो मीडिया से मिलती हैं और न ही मोबाइल रिसीव करती हैं।