देश का 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की आन बान और शान राष्ट्रीय ध्वज देश में सिर्फ तीन स्थानों पर तैयार किया जाता है। इनमें मध्य प्रदेश का ग्वालियर भी शामिल है। ग्वालियर के अलावा कर्नाटक व महाराष्ट्र में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा झंडा) को आकार दिया जाता है। ग्वालियर में मध्य भारत खादी संघ में 9 मानक की कसौटी पर खरा उतरने के बाद देश की शान भारतीय तिरंगा होता है तैयार।
भारत में मनाए जाने वाला राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम जिस राष्ट्रध्वज (तिरंगा) को बड़े गर्व से फहराकर अनुभूति करते हैं, आखिर वह कैसे और कहां बनकर तैयार होता है? बता दें कि पूरे देश में सिर्फ तीन ही ऐसे संस्थान हैं, जहां यह उच्च मानक वाला राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया जाता है। इनमें से एक ग्वालियर शहर का मध्य भारत खादी संघ है। जहां BIS (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) का ISI प्रमाणित भारतीय तिरंगा बनता है। चलिए आज कपास की कताई से लेकर राष्ट्रीय ध्वज बनने की पूरी कहानी को समझते हैं।
ग्वालियर में भारतीय तिरंगा बनाने के लिए कई चरण होते हैं। सबसे पहले शुरुआत कपास की कताई से होती है। इसके बाद बुनाई की जाती है। बुनाई के बाद डाई की जाती है। इस तरह 9 मानक पर खरा उतरने के बाद एक झंडा तैयार होता है। धागे से झंडा बनने के इस सफर में कई कारीगरों और बुनकरों की कला के साथ ही 55 दिन की कड़ी मेहनत भी लगती है। लाल किले पर भी ग्वालियर में बना झंडा फहराया जा चुका है। ग्वालियर के मध्य भारत खादी संघ में बने भारतीय तिरंगा देश में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक फहराया जा चुका है।
यहां आकार लेता है देश का सम्मान तिरंगा
ग्वालियर के जीवाजीगंज क्षेत्र स्थित मध्य भारत खादी संघ की वर्कशॉप है। जहां स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस से कुछ महीनों पहले से यहां काम करने वाले कारीगर दिन-रात काम में जुटे रहते हैं ताकि देशभर से आने वाली तिरंगे की मांग की पूर्ति की जा सके। देश भर में फहराए जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज में से 45 प्रतिशत ग्वालियर में बनाए जाते हैं। यहां से देश के 16 राज्यों में झंडा बनकर जाता है। राष्ट्रध्वज बनने की पूरी प्रक्रिया को जानने हम जब हम वर्कशॉप में पहुंचे तब यहां एक बड़े से हॉल में 15 से 16 कारीगर झंडा बनाने में व्यस्त थे। कोई झंडे की सिलाई कर रहा था तो कोई उसकी नपाई। महिलाएं झंडों की सिलाई करने में व्यस्त थीं। एक दिन में उन्हें लगभग 500 से अधिक झंडे सिलने होते हैं। झंडा सिल रहीं महिला ने बताया कि वह 1 साल से झंडा सिलने का कार्य कर रही हैं और हर झंडे को सिलने के लिए उसके साइड के हिसाब से समय लगता है, महिला का कहना था कि उन्हें बहुत खुशी और गर्व होता है जब उनके हाथ के बने हुए झंडे पूरे देश में फहराया जाते हैं।
प्रशासनिक ऑफिस, IAS, IPS की गाड़ियों के भी फ्लैग हो रहे तैयार
वही मध्य भारत खादी संघ की वर्कशॉप में बड़े झंडों के साथ साथ प्रशासनिक अधिकारियों की गाड़ी और उनके ऑफिस की टेबल पर लगने वाले झंडे भी बनाए जा रहे हैं। इस झंडे का साइज 5 बाई 7, 6 इंच होता है और एक का मूल्य 300 रुपए प्रति झंडा है। मध्य भारत खादी संघ इस साल हाई कोर्ट को 300 झंडे सप्लाई कर चुका है। भारतीय तिरंगे स्वतंत्रता दिवस पर फहराने के लिए तैयार
खास होती है झंडे को बांधने वाली रस्सी और गुल्ली मध्य भारत खादी संघ की लैब इंचार्ज मीनू मैकाले बताती हैं कि झंडे को बांधने वाली रस्सी और लकड़ी की गुल्ली भी खास होती है। झंडे में लगने वाली रस्सी सीसल वुड की होती है। यह देश में कम ही पाई जाती है। यह रस्सी पहले विदेश से मंगाई जाती थी, पर अब पश्चिम बंगाल में ही मिल जाती है। यह 480 रुपए प्रति किलो मिलती है।
देश में तीन स्थानों पर बनता है राष्ट्रीय ध्वज
तिरंगा झंडा महाराष्ट्र, कर्नाटक व मध्यप्रदेश में ही बनता है तिरंगा बनाने का काम देश में तीन स्थानों महाराष्ट्र के मुंबई, कर्नाटक के हुबली और मध्यप्रदेश के ग्वालियर में किया जाता है। ग्वालियर के मध्य भारत खादी संघ में बने झंडों की डिमांड 16 से 17 राज्यों में है। यही कारण है कि देश के 40 प्रतिशत झंडे यहीं से सप्लाई होते हैं। इसके लिए खादी संघ ने नई मशीनें लगाई हैं। जहां लैबोरेटरी में टेस्ट करके 9 मानकों के आधार पर झंडे बनाकर सप्लाई किए जाते हैं। फिलहाल सालाना एक से सवा करोड़ रुपए के झंडे ग्वालियर में तैयार हो रहे हैं, जबकि कोविड पीरियड में यह संख्या 30 लाख रुपए के लगभग थी।
तीन साइज के झंडे होते हैं तैयार
तैयार किए जाते हैं तीन साइज के राष्ट्रीय ध्वज खादी केन्द्र की लैब इंचार्ज मीनू मैकाले ने बताया कि मध्य भारत खादी संघ में BIS (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) प्रमाणित तीन साइज के तिरंगे तैयार किए जाते हैं, जिनमें 2 बाई 3, 6 बाई 4, और 3 बाई 4.5 फीट के झंडे शामिल हैं। राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए मानकों का ख्याल रखना होता है, जिसमें कपड़े की क्वालिटी, रंग और चक्र का साइज बहुत जरूरी है। उसके बाद खादी संघ में इन सभी चीजों का टेस्ट किया जाता है।
16 राज्यों में ग्वालियर से बनकर जाते हैं झंडे
मध्य भारत खादी संघ के मंत्री रमाकांत शर्मा ने बताया कि ग्वालियर में बने झंडे 16 से 17 राज्यों में जाते हैं। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली के लाल किले पर भी ग्वालियर में बना झंडा फहराया जा चुका है। उनके अनुसार ग्वालियर में बना झंडा मध्यप्रदेश के अलावा उत्तरप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, ओडिशा, अंडमान निकोबार सहित देश की एम्बेसी सहित अन्य शासकीय व अर्द्ध शासकीय संस्थाओं में जाता है।
1925 में चरखा केंद्र से शुरू हुई थी तिरंगा बनाने की यात्रा
ग्वालियर में स्थित इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी। साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला। इस संस्था से मध्य भारत की कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी हैं। उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं। यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो बारीकी से उनकी मॉनिटरिंग की जाती है। कड़े परीक्षण और कई दौर की जांच के बाद 2016 में मध्य भारत खादी संघ को BIS से तिरंगा बनाने की अनुमति मिली थी, जिसके बाद अब ग्वालियर देश का दूसरा सबसे बड़ा झंडा निर्माण केंद्र बन गया है।
20 हजार से ज्यादा राष्ट्रीय ध्वज बने हैं इस साल
खादी केंद्र इकाई का टर्नओवर पिछले साल 2023 में लगभग 80 से 99 लाख रुपए हुआ था। वहीं डिमांड बढ़ने के बाद 20 जनवरी 2023 से 15 अगस्त 2023 की अवधि के दौरान इसका व्यापार बढ़कर 1.34 करोड़ रुपए हो गया है। इस दौरान संघ ने 15 हजार से ज्यादा झंडे बनाकर सप्लाई किए हैं। लेकिन इस साल बाजारों में अमानत झंडा ज्यादा बिक रहे हैं इससे इसकी बिक्री में थोड़ी कमी आई है। पिछले साल सरकार द्वारा चलाए गए हर घर तिरंगा अभियान के चलते झंडे की बिक्री बड़ी थी क्योंकि हर घर में इस अभियान के तहत लगाए गए थे।
इनका कहना
मध्य भारत खादी संघ के सचिव रामाकांत शर्मा का कहना है कि हर साल हमारे खादी संघ में बनने वाले झंडो की डिमांड लगातार बढ़ती है। इस साल हमने 134 करोड़ का टर्नओवर किया है। झंडे की डिमांड हर साल बढ़ती है इस साल भी अंडमान और निकोबार के खादी ग्राम उद्योग भवन फोर्ट व्यू से एक बहुत बड़े झंडे का आर्डर आया था क्योंकि समय कम था इसलिए उन्हें झंडा बनाकर देने से मना कर दिया है।