‘आप पहली बार पानी से घिरा हमारा गांव देख रहे होंगे। हमने तो जब से होश संभाला, हर बारिश इसी से सामना हुआ। गांव नदियों से घिरा है और इन्हें पार करने के लिए पुल तो दूर की बात, रपटा तक नहीं है। 2 साल पहले की ही बात है। मेरी डिलीवरी होनी थी। नदी उफान पर थी। इस कारण अस्पताल नहीं पहुंच पाई। घर पर ही डिलीवरी हुई और जन्म के कुछ देर बाद ही बच्चे की सांसें रुक गईं।’ इतना कहते हुए दीपा का गला रुंध गया। आंखों से आंसू छलक आए। भरे गले से कहा, ‘भैया, क्या-क्या बताएं कि कैसे बारिश के चार महीने बीतते हैं। इस पानी ने तो मुझसे मेरा बच्चा तक छीन लिया…।’ दीपा मोकलबाड़ी गांव की रहने वाली हैं। यह गांव दो नदियों से घिरा होने से चार महीने जिले से कटा हुआ रहता है। यहां आने-जाने का एकमात्र साधन है- पानी में उतरकर नदी को पार करना। तैरना नहीं आता है, तो गांव में ही चार महीने कैद रहना होगा। मोकलबाड़ी गांव की तरह ही झिरमटा गांव भी पानी से घिरा हुआ है। दैनिक भास्कर की टीम पानी में उतरकर दोनों गांव पहुंची और जाना के यहां रहने वाले लोग बारिश के चार महीने किन-किन परेशानियों से गुजरते हैं… टीम नर्मदापुरम संभाग मुख्यालय से 70 किमी दूर मोकलबाड़ी पहुंची। इसी गांव से सटा है झिरमटा। गांव में घुसते ही प्राथमिक स्कूल और पंचायत की बिल्डिंग नजर आई। पूछने पर पता चला कि बारिश के दिनों में टीचर स्कूल आएंगे या नहीं, इसका पता नहीं होता। ग्राम पंचायत में भी पानी की वजह से सचिव नहीं पहुंच पाते हैं। विमलेश राठौर के ट्रैक्टर पर सवार होकर हमने नदी पार की। इसके बाद झिरमटा और मोकलबाड़ी ट्रैक्टर से पहुंचे। ग्रामीण कहते हैं कि देश तो आजाद हो गया, लेकिन हम इस जिंदगी से आजाद होकर सुनहरा कल देखेंगे। बच्चों की पढ़ाई के लिए किराए के मकान में रहना मजबूरी हमें मुकेश पटेल मिले। उन्होंने कहा, ‘दूध बेचने के लिए पिपरिया डेयरी ले जा रहा हूं। इन दिनों नदी में तेज बहाव है।’ बच्चों के साथ नदी किनारे खड़ीं सावित्री बाई बोलीं, ‘मेरे दो बच्चे हैं। गांव में प्राथमिक स्कूल है, लेकिन बारिश में ज्यादा पानी होने से कभी-कभी खुलता है। इसलिए बच्चों काे पिपरिया में किराए के मकान में रहकर पढ़ा रहे हैं।’ सावित्री की तरह रीना कुशवाह भी अपने दो बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव से 15 किमी दूर पिपरिया में किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। तीन महीने नहीं आ पाते टीचर, बंद रहता है स्कूल मोकलबाड़ी और झिरमटा की आबादी 2 हजार से ज्यादा है। गांव में प्राथमिक स्कूल है। बारिश के तीन महीने नदी में पानी ज्यादा होने पर टीचर स्कूल नहीं आ पाते हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि स्कूल भवन में जगह-जगह गोबर पड़ा मिला। लोगों की मुख्य दिक्कत यही है, नदी पर पुल नहीं है। किसान यशवंत पटेल नदी में पानी होने से समर्थन मूल्य पर मूंग नहीं बेच पाए। इलाज नहीं मिलने से युवक की मौत, अंत्येष्टि में रिश्तेदार नहीं आ पाए पीपलठोन गांव भी नदी से घिरा हुआ है। ज्यादा पानी होने पर ग्रामीण नदी पार नहीं कर पाते। 9 अगस्त को अखिलेश अंकिले की मौत हो गई। उसकी तबीयत बिगड़ी थी। नदी में बाढ़ होने से परिजन अस्पताल नहीं ले जा सके। अंत्येष्टि के लिए भी नदी पार कर शव ले जाना पड़ा। कई दशकों से दोनों गांव के ग्रामीण नदी पर पुल बनाने की मांग करते आ रहे हैं। आंदोलन हुए और ज्ञापन भी दिए गए। विमलेश पटेल बताते हैं, ‘मैं हर साल गांव की समस्या और नदी का मुद्दा उठाता हूं। इस वजह से प्रशासन और नेताओं से बुराई हुई। दो बार मुझ पर FIR भी हो चुकी है। काम शुरू होने के बाद भी ठेकेदार ने काम बंद कर दिया। मैंने मुख्यमंत्री कार्यालय को भी मेल किया है।’ अरविंद पटेल ने कहा, ‘पिछले सप्ताह जब बच्चे को कंधे पर बैठाकर नदी पार कर रहा था, तो मैं और बच्चा दोनों डूब गए थे। गांव के लोग मौजूद थे, तो हमें बचा लिया गया।’ मोकलबाड़ी-झिरमटा गांव…सुखी नदी यू शेप में तीन तरफ से बहती है सोहागपुर ब्लॉक की मोकलबाड़ी ग्राम पंचायत में तीन गांव मोकलबाड़ी, झिरमटा और भौखेड़ी खुर्द हैं। भौखेड़ी खुर्द नदी के इसी तरफ है। यहां आने-जाने में परेशानी नहीं होती। मोकलबाड़ी और झिरमटा गांव चारों ओर से दो नदियों से घिरे हैं। सुखी नदी यू आकार में तीन तरफ से बहती है। एक और नदी है, जो बाद में सुखी नदी में ही आकर मिल जाती है। दोनों गांव के ग्रामीणों को नदी पार करके ही आना पड़ता है। इन दोनों गांवों की आबादी करीब 2 हजार और मतदाता 1000 है। पुलिस को भी नदी में उतरकर निकलना पड़ा दो साल पहले छिंदवाड़ा का मजदूर सनीराम उइके मोकलबाड़ी आ रहा था। नदी पार करते समय बह गया। तीन दिन बाद उसका शव नदी किनारे झाड़ियों में मिला। शोभापुर पुलिस चौकी प्रभारी वर्षा धाकड़, एएसआई वीएस उईके, कॉन्स्टेबल दीपेश बौरासी के साथ सुखी नदी पहुंचीं। नदी में कमर तक तीन-साढ़े तीन फीट पानी था। शव तक पहुंचने और उसे लाने के लिए पुलिस वालों को उफनती नदी पार करनी पड़ी। कीचड़ भरे रास्ते में पैदल शव लेकर 100 मीटर आगे बढ़े। इसके बाद ट्रैक्टर-ट्रॉली में शव को रखकर सोहागपुर लाए थे। अब जिम्मेदारों की बात… बारिश के बाद पुल का काम शुरू कराएंगे PWD सेतु निगम के इंजीनियर नागेश दुबे ने बताया कि सुखी नदी पर यशराज कंस्ट्रक्शन को पुल बनाने का ठेका मिला है। मिट्टी की टेस्टिंग और बोर भी हो चुका है। ठेकेदार ने काम शुरू करने के लिए गड्ढा खोदा है। बारिश में काम नहीं कराया जाता है। इसलिए रेनी सीजन खत्म होने के बाद काम शुरू कराएंगे।