कोलारस-पिछोर एसडीओपी ने अलग-अलग स्कूलों में छात्रों से चर्चा की:तिरंगे के इतिहास, महत्व के बारे में बताया

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शिवपुरी जिले में हर घर तिरंगा अभियान के तहत तिरंगा रैलियों के आयोजन किए जा रहे हैं। इसी क्रम में आज (बुधवार) शिवपुरी के पिछोर और कोलारस एसडीओपी ने स्कूलों में पहुंचकर तिरंगे के सम्मान में छात्र-छात्राओं को तिरंगे झंडे के इतिहास, तिरंगे के महत्व एवं फहराने के तरीके पर विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर बच्चों ने भी एसडीओपी से कई सवाल किए। जिनका उत्तर देकर बच्चों की जानकारी को बढ़ाया गया। आज, 14 अगस्त बुधवार को एसडीओपी पिछोर प्रशांत शर्मा द्वारा पिछोर के सरस्वती विद्या मंदिर विद्यालय और एसडीओपी कोलारस विजय कुमार यादव द्वारा शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय मानीपुरा कोलारस में जाकर छात्र-छात्राओं को तिरंगे झंडे के इतिहास, तिरंगे के महत्व एवं फहराने के तरीके पर विस्तार से बताया। उन्होंने बच्चों को बताया कि ”भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज को इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में “तिरंगे” का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है, इसमें 24 तीलियां हैं। ध्‍वज के रंग
भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। चक्र
इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है। ध्वजारोहण के समय इन बातों का रखें ध्यान
ध्वजारोहण के लिए उपयोग किए जा रहे तिरंगे में किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं होनी चाहिए। ध्वजारोहण के समय तिरंगा झंडा किसी भी प्रकार से जमीन को नहीं छूना चाहिए। तिरंगे को ऐसे जगह फहराया जाना चाहिए, जहां से वह हर किसी को दिखाई दे। इसके साथ ही तिरंगा जिस जगह फहराया जा रहा है तो ध्यान रखना है कि वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो और झंडा उसके दाहिनी ओर होना चाहिए। तिरंगे झंडे के साथ अगर किसी और झंडे को जगह दी जानी है तो उसे तिरंगे के बराबर में नहीं फहराया जाना चाहिए, उस झंडे को तिरंगे के नीचे जगह दी जानी चाहिए। उतारते समय में इन नियमों को रखें ध्यान
ध्वजारोहण के बाद जब भी तिरंगे झंडे को उसके स्थान से हटाया जाए तो भी कुछ नियमों को ध्यान में रखना चाहिए। झंडे को अकेले में उसके स्थान से हटाया जाना चाहिए। इसके बाद उसको नियमों के तहत फोल्ड करने रखना चाहिए। किसी भी झंडे को उतारने के बाद किसी सार्वजनिक पर ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहिए। अगर झंडा किसी प्रकार से कट या फट जाए तो उसे अकेले में जाकर ही पूर्ण रूप से नष्ट करना चाहिए।“ देखिए फोटोज…