मप्र के तवा जलाशय के साथ देश की तीन स्थलों को रामसर साइड का टैग मिला है। मप्र के के तवा जलाशय (Tawa Reservoir), तमिलनाडु के नंजरायन पक्षी अभयारण्य, काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य को भारत के रामसर स्थलों की सूची में जोड़ा गया है। तीन और स्थलों के रामसर सूची में शामिल किए जाने पर पर्यावरण मंत्री ने खुशी जताई है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री यादव ने राज्यों को बधाई दी है। भूपेन्द्र यादव ने एक्स पर पोस्ट पर लिखा कि, जैसा कि राष्ट्र अपना स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है, वहीं, अपने भारत के रामसर स्थलों की सूची में तीन रामसर साइटें जोड़ी गई हैं। मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि यह उपलब्धि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने, हमारी आर्द्रभूमियों (Wetland) को अमृत धरोहर कहने और उनके संरक्षण के लिए लगातार काम करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जोर को दर्शाती है। नाम जुड़ने के बाद सीएम मोहन यादव ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि, “मध्यप्रदेश के लिए एक और उपलब्धि ‘तवा जलाशय’ बना रामसर साइट। यह भारत के साथ-साथ मप्र के लिए भी गर्व का विषय है कि तवा जलाशय को रामसर साइट घोषित किया गया है, मैं सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूँ। क्या है रामसर साइट और कन्वेंशन रामसर साइट विश्व के अलग-अलग हिस्सों में फैले वेटलैंड हैं। 1971 में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए दुनिया भर के वेटलैंड को संरक्षित करने की दिशा में यूनेस्को की ओर से एक कन्वेंशन हुआ था। यह कन्वेंशन ईरान के रामसर में हुआ था। यहां अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड ट्रिटी पर कई देशों ने हस्ताक्षर किए थे। तब से विश्व के अलग-अलग देशों में जैव विविधता से परिपूर्ण वेटलैंडों की पहचान कर इसे रामसर साइट का टैग देकर इसे संरक्षित किया जाता है। रामसर साइट का टैग मिलने के फायदे रामसर साइट का टैग मिलने से उस वैटलैंड पर पूरी निगरानी रखी जाती है। उसे पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए तैयार किया जाता है। रामसर साइट घोषित होने से पहले ही यह तय कर लिया जाता है कि यहां कितने तरह के पक्षियों की प्रजातियां पोषित हो रही है और यहां का इकोसिस्टम क्या है। इसके बाद एक तय वैश्विक मानक के तहत इसे संरक्षित किया जाता है। ऐसी जगहों पर वैसे निर्माण और अन्य गतिविधियों को रोक दिया जाता है, जिससे वेटलैंड की जैव विविधता प्रभावित होती हो। अब जानिए तवा जलाशय के बारे में तवा जलाशय का निर्माण तवा और देनवा नदियों के संगम पर वर्ष 1978 में किया गया है। मालानी, सोनभद्र और नागद्वारी नदी तवा जलाशय की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। तवा नदी, बाएं किनारे की एक सहायक नदी है जो छिंदवाड़ा जिले में महादेव पहाड़ियों से निकलती है, बैतूल जिले से होकर बहती है और नर्मदापुरम जिले में नर्मदा नदी में मिल जाती है। यह नर्मदा नदी की सबसे लंबी सहायक नदी (172 किलोमीटर) है। तवा जलाशय इटारसी शहर के पास स्थित है। जलाशय का निर्माण मुख्यतः सिंचाई के उद्देश्य से किया गया था। हालाँकि बाद में इसका उपयोग बिजली उत्पादन और जलीय कृषि के लिए भी किया जाने लगा है। तवा जलाशय का कुल डूब क्षेत्र 20,050 हेक्टेयर है। जलाशय का कुल जलग्रहण क्षेत्र 598,290 हेक्टेयर है। हरदा और नर्मदापुरम जिले के किसानों की तवा जलाशय के कारण ही तकदीर बदली। तवा जलाशय वन विभाग, जिला नर्मदापुरम के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है। जलाशय सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है और सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान और बोरी वन्यजीव अभयारण्य की पश्चिमी सीमा बनाता है। जलाशय जलीय वनस्पतियों और जीवों विशेषकर पक्षियों और जंगली जानवरों के लिए महत्वपूर्ण है। यहाँ पौधों, सरीसृपों और कीड़ों की कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कई स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है। यह मध्य प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह क्षेत्र पारिस्थितिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक और वानिकी की दृष्टि से कई अनूठी विशेषताओं से संपन्न है।