मध्य प्रदेश की सबसे विशाल कावड़ यात्रा आज 14 वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। तड़के सुबह से ही हजारों कावड़िया अपने-अपने कंधे में कावड़ उठाकर नर्मदा जल लेकर 35 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए कैलाश धाम मटामर पहुंचेगें। खास बात यह है कि हर कवाड़िया नर्मदा जल के साथ-साथ एक पौधा भी रखते है जिसे कि कैलाशधाम की पहाड़ी में लगाया जाता है। सावन के दूसरे सोमवार को इस कावड़ यात्रा के लिए पुलिस-प्रशासन ने भी तैयारी पूरी कर ली है। कावड़ यात्रा में सुरक्षा के लिहाज से 200 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। इसके साथ ही शहर में संस्कार यात्रा के दौरान बड़े वाहनों के प्रवेश पर वर्जित रखा गया है। जबलपुर की संस्कार कावड़ यात्रा का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। करीब 50 हजार से अधिक कवाड़िया गौरी घाट से सुबह 7 बजे यात्रा शुरू करेंगे जो कि दोपहर करीब दो बजे 35 किलोमीटर का पैदल सफर कर कैलाश धाम मंदिर में पहुंचकर भगवान महादेव का नर्मदा जल से अभिषेक करेंगे। हर साल की तरह इस बार भी संस्कार कांवड़ यात्रा समर्थ सदगुरु भैया जी सरकार, रामू दादा संत आचार्यों के सानिध्य में माँ नर्मदा का पूजन के साथ शुरू हुई है। हजारो कांवड़ियों का सेंकड़ों मंचो के द्वारा स्वागत भी किया जाएगा। व्यवस्था के लिए करीब दो हजार वॉलेटियर को तैनात किया गया है। संस्कार कावड़ यात्रा में मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह भी शामिल होगे। करीब 50 हजार कावड़ियों की तीन किलोमीटर लंबी यह यात्रा सुबह 7 बजे से शुरू होगी। यह संस्कार कावड़ यात्रा शहर के गौरी घाट से शुरू होगी जो कि रेतनाका, रामपुर चौक, आदिगुरु शंकराचार्य चौक , शास्त्री ब्रिज, तीन पत्ती, यातायात चौक, सुपरमार्केट, लार्डगंज चौक, बड़ा फुआरा, सराफा बाजार से गलगला, बेलबाग, घमापुर चौक, कांचघर चौक, गोकलपुर, रांझी, खमरिया चौक से कैलाश धाम में सम्पन्न होगी । भगवान शिव को सावन महीना बहुत ही प्रिय है। इसके आते ही प्रकृति भी खिल उठती है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती है। आस्था और विश्वास के इस पावन महीने से त्योहारों की भी शुरुआत हो जाती है, वैसे तो सावन की हर बात निराली है. इसकी हर चीज काफी आकर्षित करती है, लेकिन सावन का जिक्र तब तक अधूरा है. जब तक इसमें ‘कांवड़ यात्रा’ की बात ना हो. ऐसे में सावन आते ही भगवा चोला पहने भोलेनाथ के भक्त अपने महादेव को प्रसन्न करने के लिए हाथों में कावंड़ लिए गौरीघाट से नर्मदाजल लेकर निकल पड़े। कांवड़ से भरे नर्मदा जल से वो शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस अभिषेक से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. वो अपने भक्त को हर कष्ट से दूर कर देते हैं. ये कांवड़ियों का अपने शिव के प्रति प्रेम और भक्ति की शक्ति ही है, जो वो मीलों पैदल यात्रा करके कांवड़ में जल लेकर आते हैं.