‘मेरी देवरानी लक्ष्मी ने 4 जुलाई को बेटे को जन्म दिया तो लगा कि अब परिवार पूरा हो गया। सभी खुश थे, लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टरों की लापरवाही ने मेरे परिवार की खुशियां छीन ली। अब बिन मां इस मासूम को कैसे पाल रही हूं, मेरा दिल ही जानता है। हर पल सीने से लगाए रहती हूं। देवरानी नहीं रही तो क्या हुआ, अब से मैं ही इसकी यशोदा मां हूं।” ये कहते हुए बकायन गांव की सोना चौरसिया की आंखें छलछला गईं। गला रुंध गया। मासूम को बोतल से दूध पिलाते हुए बोली कि “मैं अपना दूध भी इसे पिला रही हूं। मैं पाल लूंगी। अब से मेरे दो बच्चे हैं। तीन साल की बिटिया और बेटा शिवांश।” दमोह जिला अस्पताल में डिलीवरी के बाद के जिन चार महिलाओं की मौत हुई, उनके बच्चों को कौन पाल रहा है? ये जानने दैनिक भास्कर चारों परिवारों के पास पहुंचा। किसी मासूम को 80 साल की बुजुर्ग हो चुकी दादी संभालते हुए मिलीं, तो काेई पड़ोसी की गोद में पल रहा है। वजह खुद के घर में कोई महिला ही नहीं है। पढ़िए इन मासूमों की दर्द भरी कहानी… अब जानिए परिजन कैसे पाल रहे हैं इन बच्चों को… बड़ी मां व दादी मिलकर मिलकर संभाल रहीं शिवांश को शिवांश बकायन गांव की लक्ष्मी चौरसिया का बेटा है। वह अपने बेटे के साथ केवल 5 घंटे रहीं। उसके बाद सीने में दर्द हुआ और हार्ट फेल से मौत हो गई। दैनिक भास्कर टीम जब बकायन गांव पहुंची तो लक्ष्मी के पति सचिन दमोह गए हुए थे। घर पर उनकी मां सुशीला, और भाभी सोना व भाई सतीश चौरसिया मिले। सुशीला व सोना चौरसिया मासूम शिवांश के पालने को झूला झुला रही थीं। सास-बहू से बात के दौरान ही शिवांश की नींद टूट गई। वह रोने लगा। सास सुशील ने उसे झट से गोद में उठा लिया। इसके बाद बड़ी मां सोना चौरसिया उसके लिए दूध ले आईं। दूध पिलाते हुए ही सोना चौरसिया से बात हुई। सोना ने बताया कि मेरी देवरानी लक्ष्मी बहुत भली थी। हम दोनों बहनों की तरह इस घर में थीं। कभी लगा ही नहीं कि वह मेरी सगी बहन नहीं है। शिवांश उसकी आखिरी निशानी है। ये मेरे परिवार के लिए उसका अनमोल तोहफा है। अब से इसकी जिम्मेदारी मेरी है। मेरी एक तीन साल की बेटी है। अब से ये मेरा बेटा है। अब मेरे दो बच्चे हैं। ये कहते हुए सोना की आवाज भारी हो गई। उनका गला भर आया। आंखों में आंसू छलछला पड़े। इसके साथ ही उनके होंठ भी जैसे सिल से गए। फिर वे आगे बात नहीं कर पाईं। घर में कोई महिला नहीं, पड़ोसी के यहां पल रही हानिया फातिम हुमा खान ने बेटी हानिया फातिमा को 4 जुलाई को जन्म दिया था। उसके बाद हुमा की तबीयत खराब हुई, उन्हें जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था। जहां 20 दिन तक वह संघर्ष करती रही, आखिरकार किडनी फेल होने से हुमा की मौत हो गई। परिवार में पति नईम खान, ससुर और देवर फैजान ही है। दैनिक भास्कर की टीम हटा के आजा वार्ड में उनके नईम खान से मिली, तो नईम ने कहा कि एक साल पहले ही हमारी शादी हुई थी। हुमा की पहली डिलीवरी थी, मैंने सोचा नहीं था कि वह इस तरह से हम सभी को छोड़कर चली जाएगी। नईम बोले- मुझे चिंता इस बात की है अब मैं बेटी को कैसे पालूंगा, क्योंकि घर में कोई महिला नहीं है। नवजात बिटिया का जिक्र करने पर नईम हमें 200 मीटर दूर रोड वाले रिश्ते के भाई इकबाल खान के घर ले गए। उनकी पत्नी रीना खान की गोद में नईम की बेटी हानिया फातिम थी। बोले की हुमा के निधन के बाद से भाभी रीना खान ही इस मासूम को संभाल रही हैं। ये इतनी नाजुक है कि मैं तो इसे गोद में भी उठाने से डरता हूं। मासूम पर मां की तरह ममता न्यौछावर कर रहीं रीना खान ने बताया कि जब तक कर सकती हूं, करूंगी। आखिर इस मासूम का क्या कसूर। ये तो सिर्फ 20 दिन ही मां के आंचल में रह पाई। 60 साल की दादी की गोद में पल रही है निधि हटा के बाद अगला पड़ाव था नया गांव। दुर्गेश कोरी मां-पिता के इकलौते बेटे हैं। 15 मई 2022 को उनकी शादी हर्षना कोरी से हुई थी। हर्षना ने बीएससी किया था। दो साल बाद उनके आंगन में बच्चे की किलकारी गूंजी थी। हर्षना ने बेटी निधि को जन्म देने के 16 घंटे बाद ही दम तोड़ दिया। उनकी मौत भी दमोह जिला अस्पताल में ऑपरेशन के बाद तबीयत बिगड़ने पर हुई थी। हर्षना की मौत के बाद से निधि को 60 वर्षीय सास कमला रानी संभाल रही हैं। हर्षना को गोद में लिए कमला ने कहा कि उम्र ने साथ दिया तो इस बिटिया को भी पाल लूंगी। जैसे इसके पिता दुर्गेश को पाला था। पर मां की भरपाई कहां से करूंगी। कल को ये बड़ी होगी और मां के बारे में पूछेगी तो क्या जवाब दूंगी। 80 वर्ष की जुलेखा की गोद में पल रहा फखरूद्दीन नया गांव से हिण्डोलिया पहुंचे, तो वहां निशा परवीन के पति शमीम खान मिले। घर के अंदर उनकी 80 वर्षीय मां जुलेखा बी की गोद में उनका बेटा फखरूद्दीन था। वह उस समय सो रहा था। अगल-बगल रिश्तेदार की महिलाएं थीं। हुमा की मौत भी दमोह जिला अस्पताल में ऑपरेशन के बाद किडनी खराब होने से हुई। वह ऑपरेशन के बाद 16 दिनों तक ही जिंदा रह पाईं। फखरूद्दीन को संभाल रही जुलेखा बी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनके मुंह से शब्द नहीं निकल पाए। आंखों में आंसू आ गए और वो सुबकने लगीं। बड़ी मुश्किल से कहा कि अब मेरी बूढ़ी हडि्डयों में इतनी ताकत नहीं बची, कि इस मासूम को संभाल पाऊं। अब अल्लाह ही मालिक हैं। पास बैठे शमीम ने बताया कि मेरी हुमा से शादी एक साल पहले 1 मई 2023 को हुई थी। एक साल बाद ही वो हमें छोड़कर कर बहुत दूर चली गई। नईम के परिवार में 17 साल बाद फिर उसी तरह का दुख नईम ने भर्राए गले से कहा कि मेरे परिवार में 17 साल बाद ये पहाड़ जैसा दुख टूटा है। दरअसल नईम और उनके बड़े भाई सुजात व मां जुलेखा बी साथ में रहते हैं। अन्य भाई और उनका परिवार अलग रहते हैं। सुजात की पत्नी साजिदा का 17 साल पहले इंतकाल हो गया था। तब वह अपने पीछे एक साल की बेटी महक और ढाई साल के बेटे मोहम्मद इजहार को छोड़ गई थीं। जुलेखा बी इससे आगे की बात कहती हैं। मैंने दो-दो मासूम बच्चों को उनकी मां के बिना पाला है। अब 17 साल बाद फिर फखरूद्दीन के साथ भी यही ट्रैजेडी हुई। बहू निशा परवीन हमें छोड़कर चली गई। बच्चों की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए चाराें ही पीड़ित परिवारों का कहना है कि चारों बच्चों को मां की ममता से दूर करने वाले डॉक्टरों की लापरवाही की सजा मिलने के साथ ही सरकार को इन बच्चों की भी जिम्मेदारी संभालना चाहिए। आखिर इन मासूमों को सरकारी लापरवाही ने मां के आंचल से दूर कर दिया। हुमा के जेठ इकबाल खान तो साफ कहते हैं कि प्रशासन को इन बच्चों की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और हर बच्चे की परवरिश के लिए एक आर्थिक मदद देनी चाहिए। कुछ ऐसी ही मांग निशा परवीन के जेठ सुजात की भी है। वे कहते हैं कि ये बच्चे एक तरह से यतीम हो गए हैं। मां की भरपाई कोई नहीं कर सकता है। पिता कहने के लिए होते हैं। एक बच्चे के लिए मां ही उसकी पूरी दुनिया होती है। इन बच्चों से मां छीनने वाले डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई के साथ सरकार को इन्हें आर्थिक मदद देना चाहिए। नयागांव के दुर्गेश कोरी कहते हैं कि मैं तो मजदूरी करता हूं। हर्षना के पास बीएससी की डिग्री थी। सोचा था कि उसकी आगे की पढ़ाई पूरी करा दूंगा तो कुछ करने लगेगी। अब वह तो रही नहीं। इस मासूम बिटिया की जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए। कम से कम इसकी देखभाल और पढ़ाई का जिम्मा सरकार का बनता है। क्योंकि उनके ही सरकारी महकमें के डॉक्टरों ने इन बच्चों से उनकी मां को छीना है।