नागर, राठौर के खिलाफ पहले दर्ज हो चुकी हैं FIR:फरियादी की मृत्यु हो गई नहीं मिला न्याय; श्री महालक्ष्मी कॉलोनी में भी घोटाले के हैं दोनों आरोपी, जानिए फर्जी दस्तावेजों का खेल

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इंदौर में न्याय नगर संस्था की कृष्णबाग कॉलोनी में फिलहाल पीड़ितों को राहत मिलने का कोई का रास्ता नजर नहीं आ रहा हैं। यहां के वे रहवासी जिन्होंने सालों पहले प्लॉट खरीदे थे, वे इसे लेकर रियल एस्टेट कारोबारी मनोज नागर, राजेश राठौर और अन्य को कोस रहे हैं। इन दोनों सहित अन्य के खिलाफ 2019 में खजराना थाना में धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज के मामले में दो एफआईआर दर्ज हो चुकी है। दुखद पहलू यह कि इनमें से एक में तो फरियादी का न्याय मिलने के पहले ही निधन हो गया। मनोज नागर और राजेश राठौर के खिलाफ न्याय नगर मामले में 2019 में केस दर्ज हुआ था। इसमें फरियादी कृष्णमुरारी पिता दीपचंद्र सक्सेना फरियादी थे। सक्सेना ने 23 जनवरी 2001 को न्याय विभाग कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था के न्याय नगर में प्लॉट नं. 224-ए खरीदा था। इसकी रजिस्ट्री संस्था अध्यक्ष चंपालाल पिता भगवानदास सिद्ध ने करके दी थी। इस प्लॉट पर कब्जा करके किसी ने मकान बना लिया था। जांच में यह मकान सुरेश करैया नामक व्यक्ति का बताया गया था। उसने बताया था प्लॉट की लिखापढ़ी राजेश राठौर ने की थी। करैया ने यह प्लॉट दलाल मनोज नागर के माध्यम से खरीदा था। इसके बाद उसने मकान बना लिया था। जांच में यह भी पता चला था कि नागर और राठौर ने यह जानते हुए भी कि प्लॉट सक्सेना का है तो भी प्लॉट के फर्जी दस्तावेज तैयार कर प्लॉट करैया को बेच दिया था। इस पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ केस दर्ज किया था। इस केस में फरियादी का निधन हो चुका है जबकि परिवार अब इस मामले में बात करने की स्थिति में नहीं है। खास बात यह कि न्याय नगर संस्था के जिन पदाधिकारियों ने यह बेशकीमती जमीन श्रीराम बिल्डर्स को कम भावों में बेच दी दी थी। इसके मालिक ओमप्रकाश खंडेलवाल है। इस बीच नागर ने श्रीराम बिल्डर की एक बड़ी जमीन पर कब्जा करके कृष्णबाग कॉलोनी काटी। इसमें उसने लोगों को नोटरी कर प्लॉट बेचे। इसमें कई प्लॉट नागर के करीबियों के माध्यम से भी सौदे किए गए। ये वे ही लोग हैं जिनकी अब फजीहत हो गई हैं। दो दिन पहले इनमें से 15 लोगों कोर्ट के बाद धराशायी कर दिया गया जबकि 7 अगस्त को बड़ी कार्रवाई की तैयारी है। दूसरे केस में नागर, राठौर सहित आठ आरोपी, संस्था के पदाधिकारी बन गए फरियादी दूसरा केस भी खजराना थाने का है। इसमें 2019 में मनोज नागर, राजेश राठौर के अलावा हेमंत यादव, रामकृष्ण तिरोले, राकेश पांडे, दीपू चौहान, कमल सोलंकी और भरत रघुवंशी के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। इसमें तब श्री महालक्ष्मी नगर भूखण्ड विकास समिति के अध्यक्ष अरुण सक्सेना, उपाध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल, सुरेश काबरा, सचिव प्रवीण दुबे, कोषाध्यक्ष सुशील जौहरी, सहसचिव ओमप्रकाश खंडेलवाल बयान लिए गए थे। उन्होंने श्री महालक्ष्मी कॉलोनी में प्लॉट श्री देवी अहिल्या कामगार सहकारी संस्था से खरीदना बताया था। जांच में उन प्लॉटों पर बने मकानों में संगीता सडाना ने खुद का मकान निर्माण कर रहना बताया था। यह प्लॉट श्री रामकृष्ण तिरोले से खरीदा था। फिर तिरोले ने मनोज नागर, राकेश पाण्डे, दीनू चौहान और हेमंत यादव के साथ प्लॉट का सौदा करने के बाद फर्जी नोटरी कर धोखाधड़ी की। – इसी प्रकार रामकृष्ण तिरोले ने वैभव लक्ष्मी कॉलोनी के प्लॉट नं. 44 की फर्जी नोटरी पूनमचंद जाटव को बनाकर दी थी। तिरोले, नागर, यादव और सोलंकी ने मिलकर इसे 5.85 लाख में बेचा और धोखाधड़ी की। – फरियादी रतना तायड़े को राजेश राठौर, मनोज नागर, राकेश पाण्डे कमल सोलंकी ने फर्जी नोटरी बनाकर दी और 750 वर्गफीट का प्लॉट 9.50 लाख में बेचा। – इसी तरह वीरेंद्र द्विवेदी सहित अन्य के खिलाफ भी राठौर, नागर और उनके साथियों ने धोखाधड़ी की। मामले में खजराना पुलिस ने श्री महालक्ष्मी नगर भूखण्ड विकास समिति के अध्यक्ष अरुण सक्सेना, उपाध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल, सुरेश काबरा, सचिव प्रवीण दुबे, कोषाध्यक्ष सुशील जौहरी, सहसचिव ओमप्रकाश खंडेलवाल की शिकायत पर रामकृष्ण पिता चुन्नीलाल तिरोले, मनोज नागर, राजेश राठौर, राकेश पांडे, दीपू चौहान, कमल सोलंकी और भरत रघुवंशी के खिलाफ धोखाधड़ी की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया था। ऐसे तैयार किए जाते हैं फर्जी दस्तावेज – जिस व्यक्ति के नाम की रजिस्ट्री है उसकी सर्टिफाइड कॉपी निकलवाई जाती है। इसमें उसकी साइन और फोटो सहित जमीन, मकान की पूरी जानकारी होती है। गिरोह रजिस्ट्री न कराते हुए बैक डेट में पॉवर ऑफ अटार्नी की लिखापढ़ी करता है। फिर उस पर जिस व्यक्ति के नाम से रजिस्ट्री है उसका फोटो लगा देते हैं। इसके लिए फोटो की नई कॉपी बनवाकर लगाई जाती है। इस तरह से फर्जी पॉवर अटार्नी तैयार हो जाती है। दरअसल रजिस्ट्री की कॉपी इसलिए निकाली जाती है ताकि वास्तविक मालिक का सही नाम और फोटो हासिल किया जा सके। – फिर इस पॉवर ऑफ अटार्नी से दूसरे को नोटरी कर दी जाती है। अब चेन डायुक्मेंट्स इस तरह हो जाते हैं कि संस्था का संबंधित के नाम अलॉट का कागजात रहता है। संबंधित आरोपी ने जिसे पॉवर ऑफ अटार्नी की है वह अगले व्यक्ति को नोटरी कर देता है। फिर यह व्यक्ति तीसरे को बेच देता है। यह इसलिए कि कोर्ट खरीददार की गलती नहीं मानता है। – इस मामले में न्याय नगर संस्था के पदाधिकारियों को ही जानकारी रहती थी कि कितने प्लॉट जमीन है और किन-किन नामों पर है, कौन मालिक हैं। इस तरह बड़े पैमाने पर प्लॉटों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर लोगों के साथ धोखाधड़ी की गई।