अहंकारी जीव कभी स्वतंत्र नहीं होता। अनीति को छोड़ नीति और धर्म की राह अपनाकर ही व्यक्ति स्वतंत्र हो सकता है। आज स्वतंत्रता दिवस पर हम संकल्प लें कि हम अपनी परतंत्रता त्याग कर नीति, धर्म के अनुसार चलकर स्वतंत्र हो जाएंगे। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने श्रावण मास के तहत रामचरित मानस पर प्रवचन में स्वतंत्रता दिवस पर यह बात कही। रामजी के नाम से तो पत्थर भी तैर गए महाराजश्री ने बताया कि जिनका नाम भवसागर से पार कर देता है। उन परमात्मा ने अपनी अवतार लीला से समुद्र पर सेतु का निर्माण कराया। जो पत्थर पानी में डूब जाते हैं, वे पत्थर रामजी के नाम, प्रभाव और प्रताप के कारण तैर गए। खेल ही खेल में सुंदर सेतु बन गया। जब रावण को पता चला तो वह भयभीत हो गया। परंतु अहंकार के कारण बोला कि ये वानर-भालू तो हम राक्षसों के भोजन हैं। पत्नी मंदोदरी ने रावण को समझाया कि राम परमात्मा पुरुषोत्तम हैं। विभीषण ने भी समझाया- तात राम नहीं नर भूपाल भुवनेश्वर कालहूं कर काला… वे कालों के भी काल हैं। आप उनसे बैर छोड़कर मित्रता करिए, शरण में जाइए…पर रावण नहीं माना। अहंकारी जीव काम के वशीीभूत होकर परतंत्र हो जाता है, वह अपने मद में स्वयं का नाश तो कराता ही है, उससे जुड़े लोगों का भी नाश हो जाता है। जाके प्रिय न राम-बैदेही… डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया जब मीरा बाई को मेवाड़ में भक्ति करने में बाधा आने लगी तो उन्होंने तुलसीदासजी को चिट्ठी लिखी। तुलसीदासजी ने कहा- ‘जाके प्रिय न राम-बैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥ तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी।…’ जिसे परमात्मा प्यारे नहीं है, वह कितना भी सगा-संबंधी हो उसे त्याग देना चाहिए। इसीलिए विभीषण ने रावण को त्याग दिया था। जो व्यवहार हमें अच्छा न लगे, हमें दूसरों के साथ भी वह व्यवहार नहीं करना चाहिए। अनीति और अधर्म पर चलने वाला व्यक्ति कभी भी स्वतंत्र नहीं रहता।